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राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

ठीक दस मिनट बाद ही मीना की गाड़ी गेट के अन्दर घुस रही थी। सुनीता ने मीना की कार का हार्न सुना तो बाहर लपकी पर मीना थी हार्न बजाये ही जा रही थी। उसके इस तरीके से घर के नौकर-चाकर भी वाकिफ थे। गेट से जो हार्न बजाना शुरू करती तो कोठी के दरवाजे तक जहाँ तक वह अक्सर अपनी कार खड़ी करती थी हार्न बजाती ही चली जाती थी।

अपने कमरे में लेटे मुकेश की आंख हड़बड़ा कर खुल गई। गाड़ी के तेज होने की आवाज ने उसे झकझोर कर रख दिया। मुकेश हड़बड़ी कर उठ खड़ा हुआ। उसका ख्याल था जरूर सेठ जी ही होंगे, जल्दी में होंगे इसीलिये इतना तेज हार्न बजाया होगा।

मुकेश ने पांव में चप्पल डाले और खिड़की पर पहुंच गया। गाड़ी सेठजी की नहीं थी..फिर कौन है ! इस उत्सुकता ने मुकेश को खिड़की पर खड़े रहने पर मजबूर कर दिया।

तभी मीना ने दरवाजा खोला और करीब दौड़ती हुई सुनीता के पास पहुंची। सुनीता तो खुद ही बाहर निकल आई थी। वह 'जानती थी मीना ने दस मिनट कहा है तो दस से ग्यारहवां मिनट . नहीं हो सकता। ये मीना की आदत थी वह समय की बहुत ही पाबन्द थी।

“हाँ यार अब सुना...तूने तो मेरे दिल की धड़कन ही बढ़ा दी।” मीना सुनीता के साथ ड्राइंग रूम की तरफ बढ़ते हुये बोली।

"अरे इतनी भी क्या जल्दी है, पहले बैठ तो जा।" सुनीता मीना की जल्दबाजी पर मुस्कुरा उठी।

"अरे देख मेरे दिल की धड़कन कितनी जोर-जोर से चल रही है, अगर देर कर दी तो फिर कहीं डाक्टर को न बुलाना पड़े। पीना ने सुनीता का हाथ पकड़ा और अपने दिल पर रख लिया।

अब तक दोनों ही सोफे के पास पहुंच चुकी थीं। दोनों एक सोफे पर धम्म से बैठ गई। लेकिन सुनीता ने अभी कुछ भी बताना शुरू नहीं किया था, हो मीना की परेशानी देखकर उसे मजा आ रहा था और वह धीरे-धीरे मुस्कुरा रही थी।

सुनीता को इस प्रकार चुप मुस्कुराते देख मीना ऊपर से नीचे तक जल उठी और धड़ाक से एक धौल सुनीता की कमर में जमा दिया।

"अरे......ये क्या करती है?” सुनीता उछल पड़ी।

"यार किसी ने सही कहा है, लातों के भूत बातों से नहीं मानते। अब तुम तुरन्त शुरू हो जाओ नहीं तो लातें भी शुरू हो जायेंगी।" इतना कहकर मीना ने फिर हाथ उठाया परन्तु इस बार सुनीता सावधान थी वह तुरन्त ही वहाँ से उठ गई।

"चल तू भी क्या याद करेगी कि पड़ा था किसी से पाला...सुनाती हूँ तुझे।” और फिर सुनीता ने सुबह का सारा किस्सा मीना को सुना दिया। उसने कुछ भी नहीं छिपाया था यहाँ तक कि यह भी बता दिया कि मुकेश उनके घर में ही ठहरा है।

इधर मुकेश ने खिड़की से देखा कि एक लड़की दौड़ती हुई अन्दर प्रवेश कर गई। उसे समझ में नहीं आया कि वह लड़की कौन है, इस प्रकार दौड़ती हुई क्यों गई है, उसके दिमाग ने कहा-होगी कोई सुनीता की सहेली...परन्तु दौड़ने का मतलब। वह परेशानी में कमरे से निकलकर दीनू काका के पास चल दिया, सब जानने के लिये। मुकेश क्या जानता था कि वह लड़की इस तरह ही तूफान मचाती है।

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