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राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

अब तक दोनों बंगले के गेट पर पहुंच गये थे। दरबान ने सुनीता को वापिस आते देखा तो आश्चर्य चकित हो गया। दरबान एक बूढ़ा व्यक्ति था। उसने कहा-"अरे विटियो क्या बात है, तुम तो कालेज गई थीं?”

“हाँ काका, परन्तु रास्ते में कुछ ऐसा घट गया कि वापिस आना पड़ा।” सुनीता ने दरबान से कहा।

दरबान ने गेट खोल दिया। मुकेश वहीं खड़ा रह गया। सुनीता ने जब मुकेश को वहाँ खड़े देखा तो बोली-“आइये।"

"वो सुनीता जी अब आपका घर देख लिया है फिर कभी आऊंगा।"

"आइये न आपकी डैडी से मुलाकात कराऊं।” फिर दरबान की तरफ मुड़कर बोली-“काका डैडी हैं या चले गये।

"अभी तो घर पर ही हैं।" दरबान ने बताया।

"तब आइये मैं विश्वास दिलाती हैं कि आपकी नौकरी पर। कोई आंच नहीं आयेगी। सुनीता के स्वर में दृढ़ता थी फिर उसके : कहने का अन्दाज कुछ ऐसा था कि मुकेश उसके प्रस्ताव को ठुकरा नहीं सका और वह सुनीता के पीछे-पीछे चल दिया।

गेट पार करने के बाद कुछ खुला भाग था जहाँ चारों ओर सुन्दर-सुन्दर फूल लगे थे। उसके बाद बंगला बना था। दोनों चलते हुये द्वार के पास पहुंचे। तभी मुकेश ने एक रौबदार व्यक्ति को बाहर निकलते देखा उनके चेहरे पर रौब था, वह कुछ भारी शरीर के मालिक थे। चेहरे पर बड़ी-बड़ी मूंछे और भी उनके व्यक्तित्व को बढ़ा रही थीं, वह एक हाथ में छड़ी थामे हुये थे। उन्होंने सुनीता को देखते ही कहा-“अरे बेटी तुम...तुम कालेज गई थीं।"

"जी डैडी गई तो थी परन्तु वापिस आ गई।” सुनीता ने कहा।

"क्यों क्या हमारी बेटी की तबीयत कुछ ख़राब है?" सेठजी के चेहरे पर परेशानी छलक आई।

"नहीं डैडी परन्तु अन्दर तो चलिये तभी तो सब कुछ। बताऊंगी।”

सुनीता ने अन्दर घुसते हुये कहा फिर मुकेश की तरफ देख कर कहा-

"आइये।"

सुनीता के साथ उसके डैडी भी वापिस मुड़ गये और सोफे पर बैठे गये। मुकेश ने सेठ जी की तरफ देखकर दोनों हाथ जोड़ दिये-"नमस्ते।"

“नमस्ते।" मुकेश को देखते हुये सेठजी ने कहा।

वो मुकेश को गौर से देख रहे थे क्योंकि आज तक सुनीता के साथ कालेज का कोई युवक इस प्रकार नहीं आया था। सुनीता . काफी रिजर्व रहने वाली लड़की थी। उसकी तो सहेलियां भी दो चार ही थीं। फिर लड़के का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता था।

सुनीता ने डैडी को इस प्रकार देखते हुये देखा तो उसके . चेहरे पर मुस्कान फैल गई। वह अपने डैडी के मन की हालत सपा रही थी और उसने कहा-"डैडी थे मुकेश हैं, आज इनकी बदौलत ही आपकी बेटी आपके पास है।"

"क्या मतलब?” सेठ जी सुनीता की बात सुन चौंक उठे।

फिर सुनीता ने अपने साथ पेश आये हादसे का पूरा विवरण अपने डैडी को सुना दिया।

सुनकर सेठजी के चेहरे पर चिंता की रेखायें दौड़ गई साथ : ही मुकेश के प्रति उनके दिल में ऊंचे भाव पैदा हो गये और उन्होंने मुकेश से कहा-"बेटा आज तुमने मेरी इज्जत बचा ली अगर मेरी बेटी को कुछ हो जाता तो मैं कहीं का नहीं रह जाता...ले देकर

ईश्वर ने एक ही तो बेटी मुझे में है...ये तुम्हारा उपकार मैं कभी..

नहीं भुला पाऊंगा।” फिर उन्होंने सुनीता से कहा-“सुनीता मैंने सुबह . ही तुमसे कहा था मेरी कार ले जाओ परन्तु तुम भी पक्की जिद्दी हो...तुम्हारी जिद्द के कारण ही ये सब हो गया।”

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