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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

तभी अन्दर से मामा को स्वर सुनाई पड़ा-“अरी भागवान उसे घर में तो घुसने दे। दरवाजे पर ही चिल्लाना शुरू कर दिया।

"सुनो जी तुम्हें बीच में बोलने की कोई जरूरत नहीं है...आज मैं इसकी खबर लेकर ही रहूंगी...आजकल ये बड़ी घूमने लगी है।"

मामी का स्वर और भी तेज हो गया था लेकिन उसने रास्ता छोड़ दिया था।

लता चुपचाप अन्दर चल दी। उसके पीछे-पीछे ही मामी भी चिल्लाते हुये कमरे में चलं दी-"हरामजादी... अभी तेरी खाल उधेड़ती हूं...तुझे ज्यादा दिन लग गये हैं। दुनिया में घूमती है और आकर हमें कहती है सहेली के घर गई थी।"

अब मामी ने पास पड़ी लकड़ी उठा ली वह जैसे ही उठने को हुई मामा ने उसका हाथ पकड़ लिया।

"देख भागवान मैं तुझे इस बिना मां बाप की बच्ची पर ये जुल्म नहीं करने दूंगा।” मामा के स्वर में दृढ़ता थी।

"अच्छा तो मैं तुम्हारी कुछ भी नहीं रही...ये हरामखानी ही सब कुछ है जो पैदा होते ही अपने मां बाप को खा गई और अब मेरी छाती पर मूंग दल रही है।"

"देख भागवान अपनी जुबान बन्द कर ले नहीं तो अच्छा न होगा। मैं सालों से ये स्व देखता आ रहा हूँ परन्तु अब जवान लड़की पर हाथ नहीं उठाने दूंगा तुझे।" फिर लता की ओर मुड़कर बोले-“जा बेटी भूखी होगी कुछ खा पी ले।"

"हाँ तुमने दो चार नौकर लगा रखे हैं-जो तुम्हारी लाडली के लिये पका-पका कर रखें-और ये महारानी घूम फिर कर आये और खाना शुरू कर दे। चल री चाय पका बैठ के।" मामी ने चीखते ने हुये कहा।

लता तो यही चाहती थी वह तुरन्त ही रसोई की ओर चल दी।

मुकेश लता से अलग होकर अपने घर की तरफ चल दिया। पर उसकी आंखों में लता का मुरझाया चेहरा घूम रहा था। वह लता की मामी के विषय में भी अच्छी तरह जानता था। पर वह कर भी क्या सकता था?

ट्यूशन के पैसे से उसका अपना ख़र्च भी बड़ी मुश्किल से चलता था। उसके पास कपड़ों के नाम पर दो जोड़ी कपड़े थे जिन्हें रोज थोता था और पहनता था। खाने के नाम पर पन्द्रह दिन उसे रूखी रोटी ही खानी पड़ती थी। ऐसे में वह भला लता को अपने साथ भूखा कैसे रख सकता था।

मुकेश इन्हीं ख्यालों में खोया चला जा रहा था। उसे पता भी नहीं चला। कब वह अपने कमरे के सामने पहुंच गया।

मुकेश ने दरवाजा खोला। अन्दर जाकर अपने पलंग पर बैठ गया। लता के बारे में सोचते-सोचते उसकी भूख प्यास सब खत्म हो गई थी।

मुकेश बिना खाना खाये ही बिस्तर पर लेट गया। उसे वो दिन याद आने लगे जब वह पहली बार कालेज गया था। सभी लड़के-लड़कियों ने उसे बेवकूफ बनाया था। जिनके बीच लता भी थी दूसरे दिन मुकेश ने किसी से भी बात नहीं की थी।

लता कालेज की ऐसी लड़कियों में से थी जो अपनी पढ़ाई से ही काम रखती थी। पर मुकेश को सताने में उसने दिल खोल कर शरारत की थी। लेकिन घर आकर वह फ्छता. रही थी कि उसने मुकेश को बेकार ही परेशान किया।

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