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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

जब नाश्ता खत्म हो गया तो विकास ने लता के ऊपर, एक चोर नजर डाली। लता सिर झुकाये हुये किन्हीं विचारों में खोई : हुई थी। इस समय उसका चेहरा बड़ा मासूम नजर आ रहा था, उसके सौन्दर्य पर और भी निखार आ रहा था।

विकास का मन हुआ उठकर लता को अपनी बाहों में भर ले। पर तुरन्त ही उसने अपना इरादा त्याग दिया।

"मैंने जो किया ठीक किया न लता...तुम्हें कोई एतराज हो तो अभी कह दो फिर कोई दूसरा रास्ता निकाला जाये।” विकास

ने लता से कहा।

"ठीक है विकास...इस बुरे समय में तुमने मुझे सहारा दिया क्या ये कम है...मैं तो सोच रही हूं। मैं तुम्हारा कर्ज किस प्रकार उतारूंगी। लता ने कृतज्ञता भरे स्वर में कही।

"फिर तुमने उल्टा-सीधा बोलना शुरू किया।” विकास ने लता को टोका-"अच्छा लता तुम रामू काका से जो जरूरत हो मांग। लेना...मैं चलता हूं...कुछ आफिस का काम है...फिर तुम्हारे लिये मकान का इन्तजाम भी करना है। इतना कहते हुये विकास उठ : खड़ा हुआ और एक नजर, लता पर डालते हुये बाहर निकल गया।

मामी की जब आंख खुली तो काफी दिन चढ़ चुका था।...उसे घर में कहीं कोई आवाज नहीं सुनाई दी तो मामी का पारा एकदम चढ़ गया।

“अरी हरामजादी अभी तक पड़ी सो रही है। घर का काम क्या कोई बाहर से करने आयेगा।" बिस्तर पर पड़े-पड़े ही मामी चित्ला उठी।

उसके चिल्लाने से मामा की भी आंख खुल गई।

"अरी भागवान अभी बिस्तर से उठी नहीं कि चीखना शुरू कर दिया...अरे बच्चा ही तो है नींद आ गई होगी...उठ जायेगी।” मामा ने शांत स्वर में कहा।

"हाँ...हाँ तुम्हें तो सदा बच्ची ही नजर आयेगी...कभी भी ये नहीं कि उसे सही बात समझायें। ताड़ की तरह बढ़ी जा रही है। अक्ल नहीं दो कौड़ी की थी।"

“अरी भागवान तू तो सही बात करने पर खाने को दौड़ती है...अंरी अगर एक दिन देर से उठ जायेगी तो क्या कोई आसमान टूट जायेगा।"

अब कुछ-कुछ क्रोध मामा को आने लगा था उसका कारण था उनकी नींद खराब होना।

“तो फिर तुम्हीं जगा लो अपनी लाडली को।" इतना कहकर मामी ने चादर ओढ़ ली।

मामा गुस्से में बिस्तर से उतरे...और लता के कमरे में चल दिये।

कमरे में मामा ने देखा लता नहीं थी। उन्होंने सोचा शायद रसोई में हो। वो रसोई में पहुंचे। लेकिन लता वहाँ भी नहीं थी। मामा ने लता...लता कहकर कई आवाजें लगाई, लेकिन उन्हें कोई .. जवाब नहीं मिला।

मामा की समझ में नहीं आ रहा था। इतनी सुबह लता कहाँ चली गई। वह कमरे के अन्दर आ गये।

"अरी भागवान लता घर में नहीं है। शायद कुछ लेने गई हो। हाँ याद आया दूध लेने गई होगी।” मामा को तसल्ली हुई।

“क्या वो हरामजादी अभी तके दूध ही नहीं लाई...अजी देख " के आओ अभी तक वहाँ क्या कर रही है...मिल गई होगी कोई सहेली वहेली...बातूनी तो इतनी है बस इसकी बातों से भगवान से बचाये।” मामी का पारा काफी चढ़ा हुआ था।

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