धर्म एवं दर्शन >> विवाह पद्धति विवाह पद्धतिआचार्य शिवदत्त मिश्र
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हिन्दू विवाह की पद्धति सरल भाषा में
दो शब्द
ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गान्धर्व, राक्षस तथा पैशाच इन आठ प्रकार के विवाहों में ब्राह्म विवाह की ही प्रधानता धर्मशास्त्रकारों ने स्वीकार की है। ब्राह्म विवाह द्वारा ही दाम्पत्य जीवन सुखमय एवं चिरस्थायी होता है और उसी से धार्मिक सन्तति भी उत्पन्न होती है।
यद्यपि विवाह-पद्धति के अनेकों संस्करण प्रकाशित हुए हैं, फिर भी आधुनिक शैली में संशोधित-सम्पादित तथा हिन्दी टीका एवं अनेक विशेषताओं के साथ प्रस्तुत संस्करण कर्मकाण्डियों एवं पौरोहित्य-कार्य कराने वाले सर्व-साधारण विद्वानों के लिए भी सर्वाधिक उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ है।
इसमें मूल-पाठ की शुद्धता, ग्रन्थस्थ समस्त मन्त्रों की पूर्णता, कार्यविधि में स्पष्टीकरण एवं हिन्दी टीका सहित विवाह-पद्धति से सम्बन्धित सभी विषयों का उल्लेख इसकी प्रधान विशेषता है। स्वस्तिवाचन, गणेशाम्बिका-पूजन, कलशस्थापन, शाला-विधान, शाखोच्चार-मङ्गलाष्टक, अभिषेक एवं विनय-पुष्पाञ्जलि आदि भी इसमें दे देने से पुस्तक की उपयोगिता अत्यधिक बढ़ गयी है।
- शिवदत्त मिश्र शास्त्री
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- दो शब्द
- दो शब्द
- वर-वरण-विधानम्
- वर-वरण-विधानम्
- स्वस्तिवाचनम्
- स्वस्तिवाचनम्
- सङ्कल्पः
- सङ्कल्पः
- गणेशाम्बिकापूजनम्
- गणेशाम्बिकापूजनम्
- कलशस्थापनं पूजनं च
- कलशस्थापनं पूजनं च
- कलशाऽभिमन्त्रणम्
- कलश-प्रार्थना
- कलशाऽभिमन्त्रणम्
- कलश-प्रार्थना
- वरपूजनम्
- वरपूजनम्
- सविधि-मण्डपस्थापनं पूजनं च
- सविधि-मण्डपस्थापनं पूजनं च
- हरिद्रालेपनम्
- हरिद्रालेपनम्
- मातृकापूजनम् (पञ्चाङ्गम्)
- मातृकापूजनम् (पञ्चाङ्गम्)
- मातृभाण्डस्थापनं पूजनं च
- पित्रादीनामावाहनम्
- मातृभाण्डस्थापनं पूजनं च
- पित्रादीनामावाहनम्
- द्वारमातृकापूजनम्
- द्वारमातृकापूजनम्
- षोडशमातृकापूजनम्
- षोडशमातृकापूजनम्
- श्रियादि-सप्तघृत-मातृकापूजनम्
- श्रियादि-सप्तघृत-मातृकापूजनम्
- आयुष्यमन्त्रजपः
- आयुष्यमन्त्रजपः
- साङ्कल्पिक-नान्दीश्राद्ध-प्रयोगः
- साङ्कल्पिक-नान्दीश्राद्ध-प्रयोगः
- द्वारपूजा
- द्वारपूजा
- विवाहानुक्रमणिका
- विवाहानुक्रमणिका
- विवाह-विधानम्
- विवाह-विधानम्
- शाला-विधानम्
- शाला-विधानम्
- कन्यापूजनम्
- कन्यापूजनम्
- गोत्रोच्चार
- गोत्रोच्चार
- शाखोच्चारः
- शाखोच्चारः
- कन्यादानम्
- कन्यादानम्
- कन्यादान-प्रधान-सङ्कल्पः
- कन्यादान-प्रधान-सङ्कल्पः
- कन्या-प्रार्थना
- कन्यादान-साङ्गता
- कन्या-प्रार्थना
- कन्यादान-साङ्गता
- दृढकलशस्थापनम्
- दृढकलशस्थापनम्
- कुशकण्डिका
- कुशकण्डिका
- आघारसंज्ञक-द्वादशाहुतयः
- आघारसंज्ञक-द्वादशाहुतयः
- राष्ट्रभृद्धोमः
- राष्ट्रभृद्धोमः
- जयाहोमः
- जयाहोमः
- अभ्यातानहोमः
- अभ्यातानहोमः
- पञ्चाहुतयः
- पञ्चाहुतयः
- लाजाहोम:
- लाजाहोम:
- वध्वङ्गुष्ठग्रहणम्
- अश्मारोहणम्
- वध्वङ्गुष्ठग्रहणम्
- अश्मारोहणम्
- सप्तपदी
- सप्तपदी-श्लोकाः
- सप्तपदी
- सप्तपदी-श्लोकाः
- वरकृताभिषेक
- दिवालग्ने सूर्यदर्शनम्
- वरकृताभिषेक
- दिवालग्ने सूर्यदर्शनम्
- रात्रिलग्ने ध्रुवदर्शनम्
- हृदयालम्भनम्
- रात्रिलग्ने ध्रुवदर्शनम्
- हृदयालम्भनम्
- सिन्दूरदानम्
- सिन्दूरदानम्
- कन्यावरयोग्रन्थिबन्धनम्
- स्विष्टकृद्धोमः
- कन्यावरयोग्रन्थिबन्धनम्
- स्विष्टकृद्धोमः
- ब्रह्मणे पूर्णपात्रदानम्
- ब्रह्मणे पूर्णपात्रदानम्
- त्र्यायुषकरणम्
- त्र्यायुषकरणम्
- अभिषेक: (१)
- अभिषेक: (१)
- अभिषेक: (२)
- अभिषेक: (२)
- वर-वध्वोर्गणेशपूजनम्
- वर-वध्वोर्गणेशपूजनम्
- चतुर्थीकर्म
- चतुर्थीकर्म
- ब्रह्मणे पूर्णपात्रदानम्
- ब्रह्मणे पूर्णपात्रदानम्
- विनय-पद्य-पुष्पाञ्जलिः
- विनय-पद्य-पुष्पाञ्जलिः