गजलें और शायरी >> पाकिस्तान की शायरी पाकिस्तान की शायरीश्रीकांत शहरोज़
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प्रस्तुत है पाकिस्तान के 50 प्रसिद्ध शायरों की चुनी हुई लोकप्रिय गजलें...
pakistan ki shayri by Shrikannt Shahroj
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
पाकिस्तान के 50 प्रसिद्ध लोकप्रिय और शायरों की चुनी हुई बेहतरीन ग़ज़लें इस पुस्तक में दी गई हैं। इन ग़ज़लों के अनेक रूप हैं। आज के सभी सरोकारों पर भी इन शायरों का अपना एक खा़स मुकाम है इनकी ग़ज़लों की भी अपनी पहचान है। पाकिस्तान में ये लोकप्रिय हैं ही भारत में भी उतने ही लोकप्रिय।
भूमिका
गुलशन का कारोबार चले
पाकिस्तानी शायरों से हिन्दी जगत अनजान नहीं है। वहाँ की ग़ज़लें भारत के गली-कूचों में सुनाई पड़ती हैं। उन्हें जो दर्जा पाकिस्तान के गुलाम अली देते हैं वही भारतीय जगजीत सिंह भी। यह संकलन ऐसी ही ग़ज़लों को उनके शायरों के संक्षिप्त परिचय के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास है। साथ ही यहां ऐसी ग़ज़लें भी संग्रहीत हैं, जिनकी अपेक्षित चर्चा नहीं हो सकी। ग़ज़लों का चयन करते समय परम्पराओं तथा नित नए बदलते तेवरों का भी ध्यान रखा गया है। ग़ज़ल जहां उर्दू शायरी की विरासत है वहीं फ़ैज़, अहमद फ़राज़, नासिर काज़मी और परवीन शाकिर जैसे शायरों की अन्तर्राष्ट्रीय पहचान भी है।
उर्जू ज़बान भारतीय उपमहाद्वीप की साझा संस्कृति और परम्परा की उपज है। यह ऐसी भाषा है जो आज भी विभाजित दो बड़े भूभागों को एक सूत्र में पिरोने का काम करती है। ग़ज़ल की इसमें महती भूमिका है। दोनों देशों की पत्र-पत्रिकाएँ दोनों तरफ़ शायरों की ग़ज़लों और नज़्मों से अटी पड़ी रहती हैं। ग़ौरतलब है कि पाकिस्तान के ज्यादातर प्रसिद्ध शायरों की पैदाइश-परवरिश भारत ही रही है। आज भी उनके घर-ख़ानदान के लोग यहाँ रहते हैं। फ़ैज, राशिद, अमजद जैसे शायरों ने जिस प्रगतिशील परम्परा की शुरुआत की थी, उसे आगे ले जाने वाले शायरों ने उस परम्परा को और मज़बूत किया है। कुछ शायरों ने परम्परा तथा आधुनिकता के बीच एक मध्यमार्ग की भी तलाश की है। महिला स्वर यहाँ ज़्यादा मुखर हुआ है। महिला रचनाकारों ने उर्दू शायरी को नई चेतना से सराबोर किया है। उन्होंने अपने नितान्त निजी अनुभवों तथा संघर्षों को शब्द दिये हैं जो अब तक शायरी के कैनवस से काफ़ी दूर थे। उन्होंने उन नाजुक विषयों को भी छुआ है, जो अब तक शायरी से बाहर थे।
निस्सन्देह चयन-संकलन का कार्य कठिन डगर है। क़रीब दो सौ शायरों में से चुनाव तथा उनकी चर्चित ग़ज़लों का चयन करते हुए, रह-रहकर शकील बदायूँनी का यह शे’र याद आता रहा :
पाकिस्तानी शायरों से हिन्दी जगत अनजान नहीं है। वहाँ की ग़ज़लें भारत के गली-कूचों में सुनाई पड़ती हैं। उन्हें जो दर्जा पाकिस्तान के गुलाम अली देते हैं वही भारतीय जगजीत सिंह भी। यह संकलन ऐसी ही ग़ज़लों को उनके शायरों के संक्षिप्त परिचय के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास है। साथ ही यहां ऐसी ग़ज़लें भी संग्रहीत हैं, जिनकी अपेक्षित चर्चा नहीं हो सकी। ग़ज़लों का चयन करते समय परम्पराओं तथा नित नए बदलते तेवरों का भी ध्यान रखा गया है। ग़ज़ल जहां उर्दू शायरी की विरासत है वहीं फ़ैज़, अहमद फ़राज़, नासिर काज़मी और परवीन शाकिर जैसे शायरों की अन्तर्राष्ट्रीय पहचान भी है।
उर्जू ज़बान भारतीय उपमहाद्वीप की साझा संस्कृति और परम्परा की उपज है। यह ऐसी भाषा है जो आज भी विभाजित दो बड़े भूभागों को एक सूत्र में पिरोने का काम करती है। ग़ज़ल की इसमें महती भूमिका है। दोनों देशों की पत्र-पत्रिकाएँ दोनों तरफ़ शायरों की ग़ज़लों और नज़्मों से अटी पड़ी रहती हैं। ग़ौरतलब है कि पाकिस्तान के ज्यादातर प्रसिद्ध शायरों की पैदाइश-परवरिश भारत ही रही है। आज भी उनके घर-ख़ानदान के लोग यहाँ रहते हैं। फ़ैज, राशिद, अमजद जैसे शायरों ने जिस प्रगतिशील परम्परा की शुरुआत की थी, उसे आगे ले जाने वाले शायरों ने उस परम्परा को और मज़बूत किया है। कुछ शायरों ने परम्परा तथा आधुनिकता के बीच एक मध्यमार्ग की भी तलाश की है। महिला स्वर यहाँ ज़्यादा मुखर हुआ है। महिला रचनाकारों ने उर्दू शायरी को नई चेतना से सराबोर किया है। उन्होंने अपने नितान्त निजी अनुभवों तथा संघर्षों को शब्द दिये हैं जो अब तक शायरी के कैनवस से काफ़ी दूर थे। उन्होंने उन नाजुक विषयों को भी छुआ है, जो अब तक शायरी से बाहर थे।
निस्सन्देह चयन-संकलन का कार्य कठिन डगर है। क़रीब दो सौ शायरों में से चुनाव तथा उनकी चर्चित ग़ज़लों का चयन करते हुए, रह-रहकर शकील बदायूँनी का यह शे’र याद आता रहा :
उठाके मीना जो उसने पूछा, किधर से पहले, किधर से पहले
सारी महफ़िल से आवाज़ आई, इधर से पहले, इधर से पहले
सारी महफ़िल से आवाज़ आई, इधर से पहले, इधर से पहले
निर्णय करना कठिन था। सभी की अपनी ख़ासियत है। कुछ भावों के कारण, ज़बान की नज़ाकत, उसके लबो-लहजे, शिल्पगत भिन्नताओं तथा विषयगत विविधताओं, के चलते, किसको रखा जाए, किसे संग्रह से दूर किया जाए, बड़ी कठिन डगर थी। फिर भी, संपादकीय विवेक से पाकिस्तानी शायरी का एक ऐसा प्रतिनिधि चयन बनाने की कोशिश की गई है, जो उम्मी है शायरी, में रुचि रखने वाले हर ख़ासो-आम को पसंद आयेगा।
इसकी तैयारी में हमें श्री नरेंद्रनाथ द्वारा संपादित पाकिस्तानी शायरी के संकलनों से महत्त्वपूर्ण मदद मिली है। उनके प्रति हार्दिक आभार।
इसकी तैयारी में हमें श्री नरेंद्रनाथ द्वारा संपादित पाकिस्तानी शायरी के संकलनों से महत्त्वपूर्ण मदद मिली है। उनके प्रति हार्दिक आभार।
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
जन्म : 1911, सियालकोट (पाकिस्तान)
मृत्यु : 1984
शिक्षा : एम. ए.
पहले अंग्रेजी के प्राध्यापक, फिर सेना में नौकरी। बँटवारे के बाद ‘पाकिस्तान टाइम्स’ के सम्पादक हुए। अफ्रो-एशियाई लेखक पत्रिका ‘लोटस’ का भी सम्पादन किया।
रचनाएँ : कविताओं की सात किताबें। कई भाषाओं में अनुवाद
सम्मान : कई पुरस्कार, जिनमें लेनिन शान्ति पुरस्कार भी शामिल है।
किसी देश की पहचान यदि किसी साहित्यकार के नाते की जाए तो इससे बढ़कर मसिजीवी का सम्मान और क्या हो सकता है ! फ़ैज़ ऐसे ही शायर हुए, जिनकी वजह से लोग पाकिस्तान को जानते थे। वे जेल के बन्द सीख़चों से भी सारी दुनिया के दमित, दलित, शोषित लोगों को जगाते रहे। उर्दू शायरी में प्रगतिवाद की चर्चा बिना फ़ैज़ के अपूर्ण मानी जाती है। फ़ैज़ नज़्मों और ग़ज़लों दोनों के शायर हैं। उनकी रचनाओं में जज़्बाती ज़िंदगी फैली हुई है। फ़ैज़ की शायरी में वर्तमान की व्यथा, विडम्बनाएँ तथा उससे मुक्ति की छटपटाहट स्पष्ट-अस्पष्ट दृष्टव्य हैं। फ़ैज़ के सम्पूर्ण का निर्माता भले न हो, वर्तमान को यथोचित दिशा देने का यत्न अवश्य करता है, ताकि आगामी पल स्वस्थ तथा सुन्दर हो। फ़ैज़ ने शिल्प तथा विषयगत क्रान्तिकारी परिवर्तन किए, जिसका प्रभा
जन्म : 1911, सियालकोट (पाकिस्तान)
मृत्यु : 1984
शिक्षा : एम. ए.
पहले अंग्रेजी के प्राध्यापक, फिर सेना में नौकरी। बँटवारे के बाद ‘पाकिस्तान टाइम्स’ के सम्पादक हुए। अफ्रो-एशियाई लेखक पत्रिका ‘लोटस’ का भी सम्पादन किया।
रचनाएँ : कविताओं की सात किताबें। कई भाषाओं में अनुवाद
सम्मान : कई पुरस्कार, जिनमें लेनिन शान्ति पुरस्कार भी शामिल है।
किसी देश की पहचान यदि किसी साहित्यकार के नाते की जाए तो इससे बढ़कर मसिजीवी का सम्मान और क्या हो सकता है ! फ़ैज़ ऐसे ही शायर हुए, जिनकी वजह से लोग पाकिस्तान को जानते थे। वे जेल के बन्द सीख़चों से भी सारी दुनिया के दमित, दलित, शोषित लोगों को जगाते रहे। उर्दू शायरी में प्रगतिवाद की चर्चा बिना फ़ैज़ के अपूर्ण मानी जाती है। फ़ैज़ नज़्मों और ग़ज़लों दोनों के शायर हैं। उनकी रचनाओं में जज़्बाती ज़िंदगी फैली हुई है। फ़ैज़ की शायरी में वर्तमान की व्यथा, विडम्बनाएँ तथा उससे मुक्ति की छटपटाहट स्पष्ट-अस्पष्ट दृष्टव्य हैं। फ़ैज़ के सम्पूर्ण का निर्माता भले न हो, वर्तमान को यथोचित दिशा देने का यत्न अवश्य करता है, ताकि आगामी पल स्वस्थ तथा सुन्दर हो। फ़ैज़ ने शिल्प तथा विषयगत क्रान्तिकारी परिवर्तन किए, जिसका प्रभा
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