लोगों की राय

उपन्यास >> दीक्षा

दीक्षा

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14995
आईएसबीएन :81-8143-190-1

Like this Hindi book 0

दीक्षा

सुमित्रा तथा अन्य रानियों के आने से कौसल्या को विशेष अंतर नहीं पड़ा था; किंतु कैकेयी के आने से परिस्थितियां एकदम बदल गई थी, केकेयी को सुमित्रा के समान कौसल्या से कोई सहानुभूति नहीं थी, वरन् उसे कौसल्या की ओर से आशंकाएं ही अधिक पीड़ित करती रहती थी। कौसल्या मानव-वंश की पुत्री तो थी ही। वह सम्राट् की ज्येष्ठ पत्नी तथा ज्येष्ठ पुत्र की माता थीं। वह सम्राट् पर, साम्राज्य के उत्तराधिकार पर अपना अधिकार जमा सकती थी! कैकेयी को उनसे सतर्क रहना

था; उनकी उपेक्षा करती थी; यदि संभव हो तो उन्हें पीड़ित भी करना था...

कौसल्या ने अपने लिए दशरथ के हाथों सदा तिरस्कार, उपेक्षा तथा पीड़ा पाई थी। उन्होंने कहीं स्वयं को समझा लिया था, मना लिया था कि वह इतने की ही अधिकारिणी हैं और उन्हें इतना ही मिलेगा; किंतु कैकेयी तथा दशरथ के हाथों राम का तिरस्कार कौसल्या का हृदय चीर जाता था...। कौसल्या लाख प्रयत्न करने पर भी भूल नहीं पातीं कि अपने विवाह के आरंभिक दिनों में कैकेयी ने, अपने महल में उत्सुकतावश घुस आए बालक राम को अपनी दासी से पिटवाया था। और जब अत्यन्त आक्रोश में भरकर कौसल्या ने इस बात की चर्चा दशरथ के सम्मुख की तो दशरथ ने उपेक्षा से मुंह फिरा लिया था। सुमित्रा कितनी आग-बबूला हुई थी इस घटना को सुनकर। वह कशा हाथ में लेकर कैकेयी के महल में जाने को पूर्णतः उद्यत थी. जब कौसल्या ने रो-रोकर उसे रोक लिया था।

किंतु, बाद में परिस्थितियां बदल गई थीं। कौसल्या आज तक नहीं जान सकीं कि यह राम की शालीनता, गुण, दूसरों को जीत लेने की कला के कारण था या कैकेयी अपने महल के अकेलेपन से ऊब गई थी, कि वह स्वयं आग्रह कर राम को अपने महल में बुलाने लगी थी। राम कैकेयी का अत्यन्त प्रिय हो उठा था और दशरथ भी कैकेयी को देखकर राम के अनुकूल हो गए थे...।

...और तभी शंबर के साथ युद्ध वाली घटना घटी थी। अयोध्या के अनेक यूथपति, सेनापति युद्ध में काम आए थे और सम्राट् स्वयं गंभीर रूप से घायल होकर बिस्तर पर पड़े थे। राज्य के भीतर विद्रोह की स्थिति थी और बाहर से आक्रमण का भय सदा के समान उपस्थित था। ऐसी परिस्थितियों में पहली बार बाध्य होकर सम्रा़ट् ने राम को युवराज घोषित किए बिना अयोध्या की रक्षा के लिए सैनिक अधिकार दिए थे। चौदह वर्षों के किशोर राम ने उन्हीं दिनों व्यवस्था, न्याय तथा सैनिक कर्म की जो योग्यता एवं क्षमता दिखाई थी, उसने प्रजा के साथ-साथ दशरथ तथा कैकेयी का मन भी जीत लिया था। अपने जीवन में पहली बार कौसल्या ने दशरथ के मुख से ऐसे शब्द सुने थे; 'कौसल्या! मैंने आज पहली बार यह अनुभव किया हे कि मेरा इतना बड़ा बेटा है और वह भी इतना योग्य तथा सक्षम! यह मेरे लिए कितना बड़ा सहारा है...''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रथम खण्ड - एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. द्वितीय खण्ड - एक
  13. दो
  14. तीन
  15. चार
  16. पांच
  17. छः
  18. सात
  19. आठ
  20. नौ
  21. दस
  22. ग्यारह
  23. बारह
  24. तेरह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book