स्वास्थ्य-चिकित्सा >> आदर्श भोजन आदर्श भोजनआचार्य चतुरसेन
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प्रस्तुत है आदर्श भोजन...
27. मोटापा और उपवास
आप इस बात को भली भांति जानते हैं कि स्वास्थ्य के लिए चर्बी की अत्यन्त आवशकता है। हृष्ट-पुष्ट शरीर दुबले-पतले शरीर से अधिक शक्तिमान होता है। परन्तु यदि आपका शरीर अपनी मर्यादा से बाहर मुटाने लगता है तो शक्ति की कमी होने लगती है। यदि मनुष्य अपनी शक्ति की सबसे ऊंची स्थिति पर शरीर को नहीं रखता तो उसे रोगी होने का भय ही भय है। शरीर में चर्बी का भाग मांस-पेशियों तथा स्नायु-मंडल की आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक प्रकार की संचित शक्ति है। जो आदमी मोटा होने लगता है वह रोगी नहीं है, परन्तु उसका बल क्षीण हो जाता है।
जो मनुष्य पुष्ट नहीं होता, वह इस बात को प्रमाणित करता है कि उसके शरीर में भोजन लगने का कार्य ठीक-ठीक नहीं होता। यह कार्य छोटी आंतों में होता है। वास्तव में
प्रत्येक व्यक्ति को अपने कद और हड्डियों की मोटाई, के अनुसार ही मोटा होना चाहिए। इसकी एक मर्यादा है।
उपवास के बाद जो प्रक्रिया शरीर के भीतरी अंगों में होती है उससे भोजन के शरीर में लगने की क्रिया ठीक-ठीक होने लगती है। भोजन को देर में खाने का सिद्धान्त ही पाचन-यन्त्रों को विश्राम देना है।
इसलिए सात दिन के उपवास की समाप्ति पर सावधानी से यदि उपवास नहीं खोला जाता तो उसका उद्देश्य नष्ट हो जाता है। इसलिए यहां हम उपवास खोलने की रीति संक्षेप में लिखते हैं :
1. पहले दिन दोपहर को 11 और 12 के बीच एक संतरे का रस निकालकर उसे खूब धीरे-धीरे चूस-चूसकर पिओ। कहना चाहिए, खाओ। इससे आमाशय में एक प्रकार का मृदुल अम्लरस पहुंचेगा।
2. दूसरे दिन सेब, अनार, नीबू अंगूर, अमरूद, संतरा आदि फल काम में लाए जा सकते हैं।
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