स्वास्थ्य-चिकित्सा >> आदर्श भोजन आदर्श भोजनआचार्य चतुरसेन
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प्रस्तुत है आदर्श भोजन...
13. भोजन पकाने का उद्देश्य
यदि आप सुस्त, कमजोर, थके हुए, चिड़चिड़े रहते हैं, दफ्तर में आपका मन नहीं लगता, सिरदर्द या सिर भारी रहता है, तो आपको हमारी यह सलाह है कि नाश्ते का लालच त्याग दीजिए। एक सप्ताह में आपकी ये शिकायतें दूर हो जाएंगी।
भोजन को पचाने में स्वाद का उतना ही ध्यान रखें जिससे उसमें रुचि बनी रहे। केवल स्वाद के कारण भोजन को मिर्च-मसालों की भरमार से ऐसा न बना दें कि वह आपके शरीर में शत्रु का काम करे। हमारे यहां त्यौहारों पर व्रत-उपवास की प्रथा है। आवश्यक है कि आपको उपवास के बाद सात्त्विक भोजन करना चाहिए।
इसमें कोई हानि नहीं है कि भोजन में भिन्न-भिन्न प्रकार की अनेक वस्तुएं हैं। अपितु यह अच्छा है क्योंकि थोड़ा-थोड़ा खाया जाता है। जिन लोगों को दिन-भर बैठे रहकर लिखने-पढ़ने का काम करना पड़ता है, उनका भोजन नर्म, हलका और रसदार होना चाहिए। रात को फल, दूध और तरकारियां जो उबली हुई हों तथा गेहूं का या मकई का दलिया उत्तम भोजन है। रसदार सब्ज़ी-तरकारियों में ही उनके सार कायम रहते हैं। इसलिए उन्हें तलकर या भूनकर नहीं, उबालकर खाना चाहिए।
14. झूठी और सच्ची भूख
अब खाने का समय हो गया है। इसलिए भोजन कर लिया जाए, इस धारणा ने झूठी भूख को जन्म दिया है। यह भूख नहीं है, भूख की आदत है, जो सच्ची नहीं है, झूठी है। यदि आप कुछ देर इस झूठी भूख की परवाह न करें तो आप देखेंगे कि वह गायब हो जाती है। परन्तु भोजन की सुगन्ध से आप ही आप यह झूठी भूख जाग उठती है। उस पर संयम से काबू करना चाहिए।
सच्ची भूख को तो मुंह का स्वाद ही बता देता है। कड़े परिश्रम के बाद जो भूख लगती है, वह सच्ची भूख है। उस भूख में भोजन करते ही शरीर प्रसन्न और तृप्त हो जाता है। सच्ची भूख में पीड़ा नहीं होती, बेचैनी नहीं होती, यह झूठी भूख में होती है। उस भूख की तीव्रता हमें उस समय प्रतीत होती है, जब आमाशय में बहुत-सा खून एकत्र हो जाता है और उसमें उद्वेग उठता है। ऐसी दशा में थोड़ा व्यायाम कर डालने से वह रक्त अन्यत्र चला जाता है और झूठी भूख भी गायब हो जाती है। यह बहुत कम लोगों को ज्ञान होता है कि हमारी सच्ची भूख कितनी है और हमें कितना भोजन करना चाहिए। परन्तु यदि आप इस अध्याय में बताए गए नियमों का पालन करेंगे तो आपको सच्ची भूख का तुरन्त पता लग जाएगा।
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