स्वास्थ्य-चिकित्सा >> आदर्श भोजन आदर्श भोजनआचार्य चतुरसेन
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प्रस्तुत है आदर्श भोजन...
30. कब्ज़
कब्ज़ का भोजन से गहरा सम्बन्ध है। भोजन जिस प्रकार शरीर का निर्माता है, उसी प्रकार कब्ज़ शरीर का विध्वंसक है। 80 प्रतिशत आदमी कब्ज़ के शिकार होते हैं। यह रोग बचपन से ही उनके पीछे लग जाता है।
दस्तावर दवाइयां
जुलाब की दस्तावर दवाइयां कदापि कब्ज़ की चिकित्सा नहीं हैं। उनका प्रभाव प्रकृति के विरुद्ध होता है। दस्तावर दवाइयां पहले आमाशय में पहुंचकर पीछे शरीर की नलकी में गुज़रती हुई मलाशय को साफ करती हैं। यह सरासर अस्वाभाविक है। प्राय: सभी दस्तावर दवाइयां ज्यों ही आमाशय से निकलकर छोटी आंतों में जाती हैं, उससे प्रथम वहीं से वे एक प्रकार की गरमी उत्पन्न कर देती हैं, जिससे सारा शरीर ही हिल उठता है। क्योंकि छोटी आंतों में होकर उनको आगे बढ़ने में कठिनाई होती है, जिससे सारी आंतें हिल उठती हैं। उनके उल्टे-सीधे धक्के दूसरे किनारों पर भी लगते हैं। यदि इस समय मलाशय में कुछ पानी पहुंचा दिया जाए तो दस्त आने लगते हैं। इसीलिए गर्म पानी पिया जाता है। आखिरी दस्त में वह जुलाब की दवा भी निकल जाती है। इस काम में शरीर की प्राणशक्ति का बहुत ह्रास होता है। शरीर हिल उठता है और सारे अंग टूटने लगते हैं। दुर्बल रोगी तो 'टें' बोल जाता है। इन दस्तावर दवाइयों से न तो पूर्णतया पेट साफ होता है, न कब्ज़ दूर होता है। उल्टे जुलाब के बाद कब्ज़ बढ़ जाता है। जुलाब की सभी दस्तावर दवाइयां पेट के मैल को सर्वथा खुरचकर नहीं निकाल सकती हैं। इससे होता यह है कि जमे जुए मैल में गढ़े पड़ जाते हैं, जिनके बाद कब्ज़ का और अधिक सामान इकट्ठा हो जाता है। इसमें यह होता है कि दो-चार दिन के लिए तो पेट हलका मालूम होता है परन्तु फिर वैसा ही हो जाता है। बार-बार जुलाब लेने से प्राणशक्ति बहुत ही खर्च हो जाती है।
कब्ज़ का मूल कारण
अब आप ज़रा कब्ज़ के मूल कारण पर विचार कीजिए। कब्ज़ के दो प्रधान कारण हैं-एक तो मलाशय में काफी पानी का न पहुंचना; दूसरे नियमित रूप से पाखाना न जाना।
आप यह भली भांति जानते हैं कि हमारे शरीर में पानी का बहुत ही महत्त्वपूर्ण भाग है। मलाशय को भी अपनी सफाई के लिए काफी पानी की आवश्यकता है। जब मलाशय में पानी की कमी हो जाती है तो नाली में से सड़ा हुआ पानी उसे लेना पड़ता है, जो उसकी दीवारों में होकर जमा हो जाता है, इससे मल खुश्क होकर कब्ज़ हो जाता है और मलाशय में वह सड़ने लगता है। इससे पसीने तथा मुंह की सांस के साथ दुर्गन्ध आने लगती है। इसका कारण यह है कि आमाशय की दीवारों को और भी कुछ सड़ा हुआ पानी खींचना पड़ता है।
नियमित समय पर पाखाना जाने की आदत होने से पाखाने की ठीक समय पर आप ही हाजत हो जाती है। परन्तु यदि आप कामकाज में फंसे रहकर या अन्य किसी कारण से ठीक समय पर पाखाने नहीं जाते हैं तो तुरन्त गुदा का द्वार भी अपना काम छोड़कर सिकुड़ जाता है। इससे मलाशय और गुदा की क्रियाशीलता मंद हो जाती है। इसके बाद यदि पाखाना होगा तो बहुत कम, शेष मल सूखकर मलाशय के चारों ओर जम जाता है और इस प्रकार इसकी तह नित्यप्रति मलाशय के चारों ओर जमती जाती है। इससे पेट पत्थर की तरह सख्त हो जाता है और इस जमे हुए मल के बीच में एक पतली नाली-सी बन जाती है जिसमें से होकर थोड़ा-बहुत मल प्रतिदिन निकलता रहता है। यह रोग वर्षों रहने पर भी लोग उसकी बहुत कम चिकित्सा करते हैं। जिन लोगों को दायमी कब्ज़ होता है, उनके पाखाने का रंग हरा हो जाता है।
कब्ज़ का उपाय
शुद्ध पाखाने का रंग हलका पीला होना चाहिए और वह न अधिक कड़ा हो न पतला। यदि कब्ज़ अभी आरम्भिक अवस्था में ही हो तो वह भरपूर पानी पीने और नियमित रूप से पाखाना जाने से ठीक हो जाएगा। परन्तु पुराने कब्ज़ के लिए एकमात्र सर्वोत्तम उपाय एनीमा है। एनीमा के द्वारा चाहे कब्ज़ कितना ही पुराना हो, जल्दी या देर में अवश्य ही दूर हो जाएगा। एनीमा के द्वारा काला, कठिन, दुर्गन्धित, सड़ा-गला सब मल निकल जाता है। कभी-कभी तो लम्बे-लम्बे कीड़े, मियादी ज्वर के कीटाणु और महीनों पहले खाए हुए पदार्थों के बिना पचे हुए बीज आदि निकलते हैं।
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