स्वास्थ्य-चिकित्सा >> आदर्श भोजन आदर्श भोजनआचार्य चतुरसेन
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प्रस्तुत है आदर्श भोजन...
15. नशीले तथा उत्तेजक पदार्थ
शराब, भंग, चरस आदि नशीली चीजों के तामसिक प्रभावों की बात हम आगे पृथक् अध्याय में कहेंगे। यहां हम भोजन में नित्य व्यवहार में आने वाले पदार्थ, जैसे-मिर्च-मसाले, प्याज, लहसुन, पान, चाय आदि पर थोड़ी देर दृष्टि डालते हैं। यह याद रखने की बात है कि सब नशीली और उत्तेजक वस्तुओं का प्रभाव, जिनसे खून में गरमी या उत्तेजना बढ़ जाती है, जिगर पर होता है।
जिगर या यकृत एक प्रकार की खून को छानने वाली छलनी है। जब वह अपनी इस खून छानने की क्रिया को मन्द कर देता है तो सारे खून का मैल और भोजन का अधपचा भाग इसकी नाड़ियों को बन्द कर देता है। यकृत वास्तव में पेट के सब अंगों की अपेक्षा मंद गति का अवयव है। हृदय में सबसे अधिक जीवन है। उससे कम फेफड़ों में, फिर आमाशय में और सबसे कम यकृत में। यह छोटे-छोटे कारणों से भी काम करते-करते रुक जाता है और जब तक फिर उतना ही नशा या उत्तेजना उसे दूसरे दिन न मिले तो काम नहीं करता। उत्तेजना की इन वस्तुओं में हानि न होती यदि ये नियमित रहतीं। परन्तु एक दिन की आदत के बाद उससे अधिक नशे से वह उत्तेजना पैदा होती है। इस प्रकार नशों और उत्तेजक द्रव्यों की मात्रा बढ़ती ही जाती है। नशे की मात्रा बढ़ती जाए तो क्या हानि है? इसका उत्तर यह है कि नशे के उतार पर शरीर में उसकी ऐसी प्रक्रिया होती है कि शरीर की प्राणशक्ति एकदम घट जाती है। आप एक शराबी की हालत प्रातःकाल के समय देखिए कि सरूर के उतार से उसके शरीर में कितनी पीड़ा, बेचैनी और शरीर के टूटने की तकलीफ होती है। पर सायंकाल होते ही फिर वह रस्सी से बंधे हुए कैदी की भांति शराब पीने को विवश हो जाता है। यदि नहीं पीता है तो दूसरे दिन उसका शरीर ऐसा मुरदा हो जाता है कि वह कुछ कर ही नहीं सकता। यकृत की तो खास तौर पर यह दशा हो जाती है कि वह बिना नशा किए अपना काम नहीं करता। यही कारण है कि आजकल उच्च श्रेणी के लोगों में यह आदत पड़ गई है कि वे कोई व्यायाम आदि तो करते ही नहीं, उन्हें यही एक सहज विधि मिल गई है कि संध्या समय आरामकुर्सी पर लेटकर थोड़ी शराब पीकर शरीर में उत्तेजना उत्पन्न करें और स्फूर्ति का काम उससे लें। इस प्रकार उनका जीवन चलता है, परन्तु वे प्रतिदिन एक-एक कदम कब्र की ओर बढ़ते हैं वृद्ध होने से पहले ही उनके स्नायु निर्बल हो जाते हैं और वे 50 वर्ष की आयु में आते-आते किसी काम के नहीं रहते।
भंग, चरस, तम्बाकू आदि नशों का भयानक परिणाम हम पृथक् एक अध्याय में लिखेंगे। यहां केवल अपने शरीर पर इनकी प्रतिक्रिया लिख दी है। कहना नहीं होगा ये सब नशे, जो बुद्धि को नष्ट कर देते हैं घोर तमोगुणी हैं।
मिर्च, मसाले, अचार, सिरका, खटाई, प्याज, लहसुन और चीनी राजसी भोजन हैं। चीनी के संबंध में हमने पीछे कुछ वर्णन किया है। अन्य पदार्थ शरीर में अस्थायी उत्तेजना उत्पन्न करते हैं जिनकी प्रतिक्रिया होने पर शरीर को बहुत शक्ति खर्च करनी पड़ती है।
अब हम लगे हाथों नमक के सम्बन्ध में भी कुछ कहेंगे। हम नमक को भोजन का एक अनिवार्य अंश समझते हैं परन्तु उससे शरीर में जो हानि होती है उस पर विचार करना चाहिए। नमक का वैज्ञानिक नाम सोडियम क्लोराइड है। उसके साथ ही पोटेशियम खार भी मिला रहता है, जो कि
किसी खाद्य पदार्थ में नहीं मिलता। इस प्रकार हमें जानना चाहिए कि नमक से हमारे शरीर को कुछ भी लाभ नहीं होता। उसे हम केवल स्वाद के लिए ही खाते हैं। परन्तु यह बड़े आश्चर्य की बात है, जितना नमक हम प्रतिदिन खाते हैं, उससे हमारी आंतों में कटकर घाव क्यों नहीं हो जाते।
यह बात सर्वथा निस्सार है कि नमक से स्वाद बढ़ता है। यह वास्तव में एक आदत है। मैंने केवल नमक खाना छुड़ाकर ही अत्यन्त दुस्साध्य रोगों को ठीक किया है। आप एक बच्चे के हाथ में एक रोटी का टुकड़ा, जिसमें नमक बिलकुल नहीं हो, देकर देखिए कि वह किस मज़े से उसे चूसता है; उसमें उसे कितना स्वाद आ रहा है। परन्तु नमक का कोई पदार्थ इस प्रकार नहीं चूसा जा सकता तथा थोड़ा भी अधिक नमक होने पर उसका स्वाद कड़वा हो जाता है।
पान-सुपारी
पान-सुपारी खाने का प्रचलन हमारे देश में बहुत प्राचीन काल से है। मुसलमानों को हमने ही पान खाना सिखाया है। पान का चूना आमाशय के अम्लरस को काटता है। पान खाने से आमाशय अधिकाधिक अम्लरस, भोजन के बाद, उत्पन्न करता है। प्रतिदिन पान के साथ जितना अधिक चूना खाया जाएगा, आमाशय अम्लरस भी उतना ही अधिक दूसरे दिन उत्पन्न करेगा। यद्यपि यह अम्लरस भोजन पचाने में सहायक है परन्तु उसकी अधिकता से शरीर को हानि होती है तथा पान खाने वालों के मुंह का स्वाद खराब हो जाता है और वे बिना पान खाए रह ही नहीं सकते। इसके सिवा जो लोग चूना अधिक खाते हैं, उनके लिए बिना पान खाए भोजन पचाना सम्भव नहीं है। पान का एक नशीला प्रभाव यकृत के साथ ही साथ पाचकाशय पर भी पड़ता है।
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