योग >> योग निद्रा योग निद्रास्वामी सत्यानन्द सरस्वती
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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।
अवचेतन के प्रतीक
योग निद्रा के अभ्यास में दृश्यों की कल्पना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि अवचेतन मन जो जन्म-जन्मांतर के कर्मों के अनुभवों का भण्डार है, उसके द्वार को खोलना आवश्यक रहता है। यह द्वार कभी-कभी स्वप्न में ही खुलते हैं। अन्यथा ये बंद ही रहते हैं। इनमें प्रवेश करने का द्वार ही काल्पनिक दृश्यों का अनुभव करना है। राजयोग सूत्र (1:38) में महर्षि पतंजलि ने कहा है - (स्वप्ननिद्राज्ञानालम्बनं वा), अर्थात् मन का निग्रह स्वप्न अथवा नींद के ज्ञान द्वारा हो सकता है। योग निद्रा में कल्पना में देखने के कार्य को समझने के लिए स्वप्नावस्था और उसके ज्ञान के बारे में पूर्ण जानकारी आवश्यक है।
चेतन के स्वप्न
योग निद्रा को 'नींद रहित निद्रा' की संज्ञा दी गई है, क्योंकि यहाँ व्यक्ति नींद और जागृति के बीच की स्थिति में रहता है, फिर भी उसकी सजगता बनी रहती है। अज्ञानी मनुष्य जागते हुए भी सदा स्वप्न देखता रहता है, किन्तु वह स्वयं यह नहीं जानता। उसकी ज्ञानेन्द्रियाँ सदा बाह्य आचार-व्यवहारों में लिप्त रहती हैं। जब भी वह क्षण भर के लिए अपनी इन्द्रियों से अलग होता है, स्वप्न देखना आरंभ कर देता है। यही योग निद्रा का सिद्धान्त है। वस्तुतः मनुष्य का शरीर सदा स्वप्न में रहता है, चेतन में भी अवचेतन में भी। रात को देखा हुआ स्वप्न इन विचारों का ही एक अंश होता है।
स्वप्न की साधारण अवस्था में इसके विषय और भाव वही रहते हैं जो दिन में लगातार एक के बाद एक अवचेतन में एकत्र होते रहते हैं। रात में स्वप्न में ये बाहर आते हैं, किन्तु जागने पर विस्मृत हो जाते हैं। योग निद्रा में एक के बाद दूसरी कल्पना करने का कार्य लगातार अपने आप होता रहता है, क्योंकि यहाँ स्वप्न चेतन अवस्था में निर्देशक के आदेश द्वारा बनाये जाते हैं।
स्वप्न के बारे में सही जानकारी प्राप्त करने के लिए स्वप्न और जागृति के बीच की अवस्था का ज्ञान बढ़ाना और उसे यथावत् रखना आवश्यक है। वस्तुतः कल्पना करने का कार्य इस स्थिति की यथार्थ अवस्था है। यहाँ अचेतन और अवचेतन मन की विषय-वस्तु को जाग्रत कर चेतन की अवस्था से जोड़ दिया जाता है। यह एक दिवास्वप्न की स्थिति से भिन्न प्रकार की स्थिति है जो जीवन में नई सुबह का प्रकाश भरती है और व्यक्ति में सृजनात्मक विचारों का विकास करती है।
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