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सदाबहार >> गोदान

गोदान

प्रेमचंद

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :327
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1442
आईएसबीएन :9788170284321

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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...


मिसेज खन्ना को कविता लिखने का शौक था। इस नाते से सम्पादकजी कभी-कभी उनसे मिल आया करते थे; लेकिन घर के काम-धन्धों में व्यस्त रहने के कारण इधर बहुत दिनों से कुछ लिख नहीं सकी थी। सच बात तो यह है कि सम्पादकजी ने ही उन्हें प्रोत्साहित करके कवि बनाया था। सच्ची प्रतिभा उनमें बहुत कम थी।
‘क्या लिखूँ कुछ सूझता ही नहीं। आपने कभी मिस मालती से कुछ लिखने को नहीं कहा?’
सम्पादकजी उपेक्षा भाव से बोले–उनका समय मूल्यवान है कामिनी देवी! लिखते तो वह लोग हैं, जिनके अन्दर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है, जिन्होंने धन और भोग-विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वह क्या लिखेंगे।

कामिनी ने ईर्ष्या-मिश्रित विनोद से कहा–अगर आप उनसे कुछ लिखा सकें, तो आपका प्रचार दुगना हो जाय। लखनऊ में तो ऐसा कोई रसिक नहीं है, जो आपका ग्राहक न बन जाय।

‘अगर धन मेरे जीवन का आदर्श होता, तो आज मैं इस दशा में न होता। मुझे भी धन कमाने की कला आती है। आज चाहूँ, तो लाखों कमा सकता हूँ; लेकिन यहाँ तो धन को कभी कुछ समझा ही नहीं। साहित्य की सेवा अपने जीवन का ध्येय है और रहेगा।’

‘कम-से-कम मेरा नाम तो ग्राहकों में लिखवा दीजिए।’

‘आपका नाम ग्राहकों में नहीं, संरक्षकों में लिखूँगा।’

‘संरक्षकों में रानियों-महारानियों को रखिए, जिनकी थोड़ी-सी खुशामद करके आप अपने पत्र को लाभ की चीज बना सकते हैं।’

‘मेरी रानी-महारानी आप हैं। मैं तो आपके सामने किसी रानी-महारानी की हकीकत नहीं समझता। जिसमें दया और विवेक है, वही मेरी रानी है। खुशामद से मुझे घृणा है।’

कामिनी ने चुटकी ली–लेकिन मेरी खुशामद तो आप कर रहे हैं सम्पादकजी! सम्पादकजी ने गम्भीर होकर श्रद्धा-पूर्ण स्वर में कहा–यह खुशामद नहीं है देवीजी, हृदय के सच्चे उद्गार हैं। राय साहब ने पुकारा–सम्पादकजी, जरा इधर आइएगा। मिस मालती आपसे कुछ कहना चाहती हैं। सम्पादकजी की वह सारी अकड़ गायब हो गयी। नम्रता और विनय की मूर्ति बने हुए आकर खड़े हो गये। मालती ने उन्हें सदय नेत्रों से देखकर कहा–मैं अभी कह रही थी कि दुनिया में मुझे सबसे ज्यादा डर सम्पादकों से लगता है। आप लोग जिसे चाहें, एक क्षण में बिगाड़ दें। मुझी से चीफ सेक्रेटरी साहब ने एक बार कहा–अगर मैं इस ब्लडी ओंकारनाथ को जेल में बन्द कर सकूँ, तो अपने को भाग्यवान समझूँ।

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