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सदाबहार >> गोदान

गोदान

प्रेमचंद

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :327
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1442
आईएसबीएन :9788170284321

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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...


उन्होंने मालती के चरण दोनों हाथ से पकड़ लिये और काँपते हुए बोले–तुम्हारा आदेश स्वीकार है मालती!

और दोनों एकान्त होकर प्रगाढ़ आलिंगन में बँध गये। दोनों की आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी।

39

सिलिया का बालक अब दो साल का हो रहा था और सारे गाँव में दौड़ लगाता था। अपने साथ एक विचित्र भाषा लाया था, और उसी में बोलता था, चाहे कोई समझे या न समझे। उसकी भाषा में त, ल और घ की कसरत थी और स, र आदि वर्ण गायब थे। उस भाषा में रोटी का नाम था ओटी, दूध का तूत, साग का छाग और कौड़ी का तौली। जानवरों की बोलियों की ऐसी नकल करता है कि हँसते-हँसते लोगों के पेट में बल पड़ जाता है। किसी ने पूछा–रामू, कुत्ता कैसे बोलता है?  रामू गम्भीर भाव से कहता–भों-भों, और काटने दौड़ता। बिल्ली कैसे बोले? और रामू म्याँव-म्याँव करके आँखें निकालकर ताकता और पंजों से नोचता। बड़ा मस्त लड़का था। जब देखो खेलने में मगन रहता, न खाने की सुधि थी, न पीने की। गोद से उसे चिढ़ थी। उसके सबसे सुखी क्षण वह होते, जब वह द्वार के नीम के नीचे मनों धूल बटोर कर उसमें लोटता, सिर पर चढ़ाता, उसकी ढेरियाँ लगाता, घरौंदे बनाता। अपनी उम्र के लड़कों से उसकी एक क्षण न पटती। शायद उन्हें अपने साथ खेलाने के योग्य ही न समझता था।

कोई पूछता–तुम्हारा नाम क्या है?  

चटपट कहता–लामू।

‘तुम्हारे बाप का क्या नाम है?’

‘मातादीन।’

‘और तुम्हारी माँ का?’

‘छिलिया।’

‘और दातादीन कौन है?’

‘वह अमाला छाला है।’ न जाने किसने दातादीन से उसका यह नाता बता दिया था।

रामू और रूपा में खूब पटती थी। वह रूपा का खिलौना था। उसे उबटन मलती, काजल लगाती नहलाती, बाल सँवारती, अपने हाथों कौर-कौर बनाकर खिलाती, और कभी-कभी उसे गोद में लिये रात को सो जाती। धनिया डाँटती, तू सब कुछ छुआछूत किये देती है; मगर वह किसी की न सुनती। चीथड़े की गुड़िया ने उसे माता बनना सिखाया था। वह मातृ-भावना का जीता-जागता बालक पाकर अब गुड़ियों से सन्तुष्ट न हो सकती थी।

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