सदाबहार >> गोदान गोदानप्रेमचंद
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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...
बालक मालती के गोद में आकर जैसे किसी बड़े सुख का अनुभव करने लगा। अपनी जलती हुई उँगलियों से उसके गले की मोतियों की माला पकड़कर अपनी ओर खींचने लगा। मालती ने नेकलेस उतारकर उसके गले में डाल दी। बालक की स्वार्थी प्रकृति इस दशा में भी सजग थी। नेकलेस पाकर अब उसे मालती की गोद में रहने की कोई जरूरत न रही। यहाँ उसके छिन जाने का भय था। झुनिया की गोद इस समय ज्यादा सुरिक्षत थी।
मालती ने खिले हुए मन से कहा–बड़ा चालाक है। चीज लेकर कैसा भागा!
झुनिया ने कहा–दे दो बेटा, मेम साहब का है।
बालक ने हार को दोनों हाथों से पकड़ लिया और माँ की ओर रोष से देखा।
मालती बोली–तुम पहने रहो बच्चा, मैं माँगती नहीं हूँ।
उसी वक्त बँगले में आकर उसने अपना बैठक का कमरा खाली कर दिया और उसी वक्त झुनिया उस नये कमरे में डट गयी।
मंगल ने उस स्वर्ग को कुतूहल-भरी आँखों से देखा। छत में पंखा था, रंगीन बल्ब थे, दीवारों पर तस्वीरें थीं। देर तक उन चीज़ों को टकटकी लगाये देखता रहा। मालती ने बड़े प्यार से पुकारा–मंगल!
मंगल ने मुस्कराकर उसकी ओर देखा, जैसे कह रहा हो–आज तो हँसा नहीं जाता मेम साहब! क्या करूँ। आपसे कुछ हो सके तो कीजिए।
मालती ने झुनिया को बहुत-सी बातें समझाईं और चलते-चलते पूछा–तेरे घर में कोई दूसरी औरत हो, तो गोबर से कह दे, दो-चार दिन; के लिए बुला लावे। मुझे चेचक का डर है। कितनी दूर है तेरा घर?
झुनिया ने अपने गाँव का नाम और पता बताया। अन्दाज से अट्ठारह-बीस कोस होंगे। मालती को बेलारी याद था। बोली–वही गाँव तो नहीं, जिसके पच्छिम तरफ आध मील पर नदी है?
‘हाँ-हाँ मेम साहब, वही गाँव है। आपको कैसे मालूम?’
‘एक बार हम लोग उस गाँव में गये थे। होरी के घर ठहरे थे। तू उसे जानती है?’
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