सदाबहार >> गोदान गोदानप्रेमचंद
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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...
रुद्रपाल ने इसका जवाब दिया–मैं इस विषय में बहुत पहले निश्चय कर चुका हूँ। उसमें अब कोई परिवर्तन नहीं हो सकता।
राय साहब को लड़के की जड़ता पर फिर क्रोध आ गया। गरजकर बोले–मालूम होता है, तुम्हारा सिर फिर गया है। आकर मुझसे मिलो। विलंव न करना। मैं राजा साहब को जबान दे चुका हूँ।
रुद्रपाल ने जवाब दिया–खेद है, अभी मुझे अवकाश नहीं है।
दूसरे दिन राय साहब खुद आ गये। दोनों अपने-अपने शस्त्रों से सजे हुए तैयार खड़े थे। एक ओर सम्पूर्ण जीवन का मँजा हुआ अनुभव था, समझौतों से भरा हुआ; दूसरी ओर कच्चा आदर्शवाद था, जिद्दी, उद्दंड और निर्मम। राय साहब ने सीधे मर्म पर आघात किया–मैं जानना चाहता हूँ, वह कौन लड़की है?
रुद्रपाल ने अचल भाव से कहा–अगर आप इतने उत्सुक हैं, तो सुनिए। वह मालती देवी की बहन सरोज है।
राय साहब आहत होकर गिर पड़े–अच्छा वह!
‘आपने तो सरोज को देखा होगा?’
‘खूब देखा है। तुमने राजकुमारी को देखा है या नहीं?’
‘जी हाँ, खूब देखा है।’
‘फिर भी...’
‘मैं रूप को कोई चीज नहीं समझता।’
‘तुम्हारी अक्ल पर मुझे अफसोस आता है। मालती को जानते हो कैसी औरत है? उसकी बहन क्या कुछ और होगी।’
रुद्रपाल ने तेवरी चढ़ाकर कहा–मैं इस विषय में आपसे और कुछ नहीं कहना चाहता; मगर मेरी शादी होगी, तो सरोज से।
‘मेरे जीते जी कभी नहीं हो सकती।’
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