सदाबहार >> गोदान गोदानप्रेमचंद
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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...
नदी का दूसरा किनारा आ गया। दोनों उतरकर उसी बालू के फर्श पर जा बैठे और मेहता फिर उसी प्रवाह में बोले–और आज मैं यहाँ वही पूछने के लिए तुम्हें लाया हूँ?
मालती ने काँपते हुए स्वर में कहा–क्या अभी तुम्हें मुझसे यह पूछने की जरूरत बाकी है?
‘हाँ, इसलिए कि मैं आज तुम्हें अपना वह रूप दिखाऊँगा, जो शायद अभी तक तुमने नहीं देखा और जिसे मैंने भी छिपाया है। अच्छा, मान लो, मैं तुमसे विवाह करके कल तुमसे बेवफाई करूँ तो तुम मुझे क्या सजा दोगी?’
मालती ने उसकी ओर चकित होकर देखा। इसका आशय उसकी समझ में न आया।
‘ऐसा प्रश्न क्यों करते हो?’
‘मेरे लिए यह बड़े महत्व की बात है।’
‘मैं इसकी सम्भावना नहीं समझती।’
‘संसार में कुछ भी असम्भव नहीं है। बड़े-से-बड़ा महात्मा भी एक क्षण में पतित हो सकता है।’
‘मैं उसका कारण खोजूँगी और उसे दूर करूँगी।’
‘मान लो, मेरी आदत न छूटे।’
‘फिर मैं नहीं कह सकती, क्या करूँगी। शायद विष खाकर सो रहूँ।’
‘लेकिन यदि तुम मुझसे यही प्रश्न करो, तो मैं उसका दूसरा जवाब दूँगा।’
मालती ने सशंक होकर पूछा–बतलाओ!
मेहता ने दृढ़ता के साथ कहा–मैं पहले तुम्हारा प्राणान्त कर दूँगा, फिर अपना।
मालती ने ज़ोर से कहकहा मारा और सिर से पाँव तक सिहर उठी। उसकी हँसी केवल उसके सिहरन को छिपाने का आवरण थी। मेहता ने पूछा–तुम हँसी क्यों?
‘इसलिए कि तुम ऐसे हिंसावादी नहीं जान पड़ते।’
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