सदाबहार >> गोदान गोदानप्रेमचंद
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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...
मालती अब अक्सर गरीबों के घर बिना फीस लिये ही मरीज़ों को देखने चली जाती थी। मरीज़ों के साथ उसके व्यवहार में मृदुता आ गयी थी। हाँ, अभी तक वह शौक-सिंगार से अपना मन न हटा सकती थी। रंग और पाउडर का त्याग उसे अपने आन्तरिक परिवर्तनों से भी कहीं ज्यादा कठिन जान पड़ता था।
इधर कभी-कभी दोनों देहातों की ओर चले जाते थे और किसानों के साथ दो-चार घंटे रहकर उनके झोपड़ों में रात काटकर, और उन्हीं का-सा भोजन करके, अपने को धन्य समझते थे। एक दिन वे सेमरी पहुँच गये और घूमते-घामते बेलारी जा निकले। होरी द्वार पर बैठा चिलम पी रहा था कि मालती और मेहता आकर खड़े हो गये। मेहता ने होरी को देखते ही पहचान लिया और बोला–यही तुम्हारा गाँव है? याद है हम लोग राय साहब के यहाँ आये थे और तुम धनुषयज्ञ की लीला में माली बने थे।
होरी की स्मृति जाग उठी। पहचाना और पटेश्वरी के घर की ओर कुरसियाँ लाने चला। मेहता ने कहा–कुरसियों का कोई काम नहीं। हम लोग इसी खाट पर बैठ जाते हैं। यहाँ कुरसी पर बैठने नहीं, तुमसे कुछ सीखने आये हैं। दोनों खाट पर बैठे। होरी हतबुद्धि-सा खड़ा था। इन लोगों की क्या खातिर करे। बड़े-बड़े आदमी हैं। उनकी खातिर करने लायक उसके पास है ही क्या? आखिर उसने पूछा–पानी लाऊँ?
मेहता ने कहा–हाँ, प्यास तो लगी है।
‘कुछ मीठा भी लेता आऊँ?’
‘लाओ, अगर घर में हो।’
होरी घर में मीठा और पानी लेने गया। तब तक गाँव के बालकों ने आकर इन दोनों आदमियों को घेर लिया और लगे निरखने, मानो चिड़ियाघर के अनोखे जन्तु आ गये हों। सिल्लो बच्चे को लिए किसी काम से चली जा रही थी। इन दोनों आदमियों को देखकर कुतूहलवश ठिठक गयी।
मालती ने आकर उसके बच्चे को गोद में ले लिया और प्यार करती हुई बोली–कितने दिनों का है?
सिल्लो को ठीक मालूम न था। एक दूसरी औरत ने बताया–कोई साल भर का होगा, क्यों री?
सिल्लो ने समर्थन किया।
मालती ने विनोद किया–प्यारा बच्चा है। इसे हमें दे दो।
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