सदाबहार >> गोदान गोदानप्रेमचंद
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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...
होरी बिगड़ा। और क्रोध अब रस्सियाँ तुड़ा रहा था–तू आज मार खाने पर लगी हुई है। धनिया ने नकली विनय का नाटक करके कहा–क्या करूँ, तुम दुलार ही इतना करते हो कि मेरा सिर फिर गया है।
‘तू घर में रहने देगी कि नहीं?’
‘घर तुम्हारा, मालिक तुम, मैं भला कौन होती हूँ तुम्हें घर से निकालनेवाली।’
होरी आज धनिया से किसी तरह पेश नहीं पा सकता। उसकी अक्ल जैसे कुन्द हो गयी है। इन व्यंग्य-बाणों के रोकने के लिए उसके पास कोई ढाल नहीं है। धीरे से कुदाल रख दी और गमछा लेकर नहाने चला गया। लौटा कोई आध घंटे में; मगर गोबर अभी तक न आया था। अकेले कैसे भोजन करे। लौंडा वहाँ जा कर सो रहा। भोला की वह मदमाती छोकरी है न झुनिया। उसके साथ हँसी-दिल्लगी कर रहा होगा। कल भी तो उसके पीछे लगा हुआ था। नहीं गाय दी, तो लौट क्यों नहीं आया। क्या वहाँ ढई देगा।
धनिया ने कहा–अब खड़े क्या हो? गोबर साँझ को आयेगा। होरी ने और कुछ न कहा। कहीं धनिया फिर न कुछ कह बैठे। भोजन करके नीम की छाँह में लेट रहा। रूपा रोती हुई आई नंगे बदन एक लँगोटी लगाये, झबरे बाल इधर-उधर बिखरे हुए। होरी की छाती पर लोट गयी। उसकी बड़ी बहन सोना कहती है–गाय आयेगी, तो उसका गोबर मैं पाथूँगी। रूपा यह नहीं बरदाश्त कर सकती। सोना ऐसी कहाँ की बड़ी रानी है कि सारा गोबर आप पाथ डाले। रूपा उससे किस बात में कम है। सोना रोटी पकाती है, तो क्या रूपा बरतन नहीं माँजती? सोना पानी लाती है, तो क्या रूपा कुएँ पर रस्सी नहीं ले जाती? सोना तो कलसा भरकर इठलाती चली आती है। रस्सी समेटकर रूपा ही लाती है। गोबर दोनों साथ पाथती हैं। सोना खेत गोड़ने जाती है, तो क्या रूपा बकरी चराने नहीं जाती? फिर सोना क्यों अकेली गोबर पाथेगी? यह अन्याय रूपा कैसे सहे?
होरी ने उसके भोलेपन पर मुग्ध होकर कहा–नहीं, गाय का गोबर तू पाथना सोना गाय के पास जाये तो भगा देना। रूपा ने पिता के गले में हाथ डालकर कहा–दूध भी मैं ही दुहूँगी।
‘हाँ-हाँ, तू न दुहेगी तो और कौन दुहेगा?’
‘वह मेरी गाय होगी।’
हाँ, सोलहो आने तेरी।’
रूपा प्रसन्न होकर अपनी विजय का शुभ समाचार पराजिता सोना को सुनाने चली गयी। गाय मेरी होगी, उसका दूध मैं दुहूँगी, उसका गोबर मैं पाथूँगी, तुझे कुछ न मिलेगा।
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