सदाबहार >> गोदान गोदानप्रेमचंद
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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...
इसके बाद झुनिया को कुछ होश न रहा। नौ बजे सुबह उसे होश आया, तो उसने देखा, चुहिया शिशु को लिए बैठी है और वह साफ साड़ी पहने लेटी हुई है। ऐसी कमजोरी थी, मानो देह में रक्त का नाम न हो।
चुहिया रोज सबेरे आकर झुनिया के लिए हरीरा और हलवा पका जाती और दिन में भी कई बार आकर बच्चे को उबटन मल जाती और ऊपर से दूध पिला जाती। आज चौथा दिन था; पर झुनिया के स्तनों में दूध न उतरा था। शिशु रो-रोकर गला फाड़े लेता था; क्योंकि ऊपर का दूध उसे पचता न था। एक छन को भी चुप न होता था। चुहिया अपना स्तन उसके मुँह में देती। बच्चा एक क्षण चूसता; पर जब दूध न निकलता, तो फिर चीखने लगता। जब चौथे दिन साँझ तक भी झुनिया के दूध न उतरा, तो चुहिया घबरायी। बच्चा सूखता चला जाता था। नखास पर एक पेंशनर डाक्टर रहते थे। चुहिया उन्हें ले आयी। डाक्टर ने देख-भाल कर कहा–इसकी देह में खून तो है ही नहीं, दूध कहाँ से आये। समस्या जटिल हो गयी। देह में खून लाने के लिए महीनों पुष्टिकारक दवाएँ खानी पड़ेंगी, तब कहीं दूध उतरेगा। तब तक तो इस मांस के लोथड़े का ही काम तमाम हो जायगा।
पहर रात हो गयी थी। गोबर ताड़ी पिये ओसारे में पड़ा था। चुहिया बच्चे को चुप कराने के लिए उसके मुँह में अपनी छाती डाले हुए थी कि सहसा उसे ऐसा मालूम हुआ कि उसकी छाती में दूध आ गया है। प्रसन्न होकर बोली–ले झुनिया, अब तेरा बच्चा जी जायगा, मेरे दूध आ गया। झुनिया ने चकित होकर कहा–तुम्हें दूध आ गया?
‘नहीं री, सच!’
‘मैं तो नहीं पतियाती।’
‘देख ले!’
उसने अपना स्तन दबाकर दिखाया। दूध की धार फूट निकली।
झुनिया ने पूछा–तुम्हारी छोटी बिटिया तो आठ साल से कम की नहीं है!
‘हाँ, आठवाँ है; लेकिन मुझे दूध बहुत होता था।’
‘इधर तो तुम्हें कोई बाल-बच्चा नहीं हुआ।’
‘वही लड़की पेट-पोछनी थी। छाती बिलकुल सूख गयी थी; लेकिन भगवान् की लीला है, और क्या?’
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