सदाबहार >> गोदान गोदानप्रेमचंद
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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...
सहुआइन ने पाँव खींचकर कहा–अब यही सरारत मुझे अच्छी नहीं लगती। मैं साल-भर के भीतर अपने रुपए सूद-समेत कान पकड़कर लूँगी। तुम तो व्यवहार के ऐसे सच्चे नहीं हो; लेकिन धनिया पर मुझे विश्वास है। सुना पण्डित तुमसे बहुत बिगड़े हुए हैं। कहते हैं, इसे गाँव से निकालकर नहीं छोड़ा तो बाह्मण नहीं। तुम सिलिया को निकाल बाहर क्यों नहीं करते? बैठे-बैठायें झगड़ा मोल ले लिया।
‘धनिया उसे रखे हुए है, मैं क्या करूँ।’
‘सुना है, पण्डित कासी गये थे। वहाँ एक बड़ा नामी विद्वान् पण्डित है। वह पाँच सौ माँगता है। तब परासचित करायेगा। भला, पूछो ऐसा अँधेर नहीं हुआ है। जब धरम नष्ट हो गया, तो एक नहीं हजार परासचित करो, इसे क्या होता है। तुम्हारे हाथ का छुआ पानी कोई न पियेगा, चाहे जितना परासचित करो।’
होरी यहाँ से घर चला, तो उसका दिल उछल रहा था। जीवन में ऐसा सुखद अनुभव उसे न हुआ था। रास्ते में शोभा के घर गया और सगाई लेकर चलने के लिए नेवता दे आया। फिर दोनों दातादीन के पास सगाई की सायत पूछने गये। वहाँ से आकर द्वार पर सगाई की तैयारियों की सलाह करने लगे।
धनिया ने बाहर निकलकर कहा–पहर रात गयी, अभी रोटी खाने की बेला नहीं आयी? खाकर बैठो। गपड़चौथ करने को तो सारी रात पड़ी है।
होरी ने उसे भी परामर्श में शरीक होने का अनुरोध करते हुए कहा–इसी सहालग में लगन ठीक हुआ है। बता, क्या-क्या सामान लाना चाहिए। मुझे तो कुछ मालूम नहीं।
‘जब कुछ मालूम ही नहीं, तो सलाह करने क्या बैठे हो। रुपए-पैसे का डौल भी हुआ कि मन की मिठाई खा रहे हो।’
होरी ने गर्व से कहा–तुझे इससे क्या मतलब। तू इतना बता दे क्या-क्या सामान लाना होगा?
‘तो मैं ऐसी मन की मिठाई नहीं खाती।’
‘तू इतना बता दे कि हमारी बहनों के ब्याह में क्या-क्या सामान आया था।’
‘पहले यह बता दो, रुपए मिल गये?’
‘हाँ, मिल गये, और नहीं क्या भंग खायी हो।’
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