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सदाबहार >> गोदान

गोदान

प्रेमचंद

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :327
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1442
आईएसबीएन :9788170284321

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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...


दातादीन ने लाठी फटकार कर कहा–मुँह सँभाल कर बातें कर हरखुआ! तेरी बिटिया वह खड़ी है, ले जा जहाँ चाहे। हमने उसे बाँध नहीं रक्खा है। काम करती थी, मजूरी लेती थी। यहाँ मजूरों की कमी नहीं है।

सिलिया की माँ उँगली चमकाकर बोली–वाह-वाह पण्डित! खूब नियाव करते हो। तुम्हारी लड़की किसी चमार के साथ निकल गयी होती और तुम इस तरह की बातें करते, तो देखती। हम चमार हैं इसलिए हमारी कोई इज्जत ही नहीं! हम सिलिया को अकेले न ले जायँगे, उसके साथ मातादीन को भी ले जायँगे, जिसने उसकी इज्जत बिगाड़ी है। तुम बड़े नेमी-धरमी हो। उसके साथ सोओगे; लेकिन उसके हाथ का पानी न पिओगे! यही चुड़ैल है कि यह सब सहती है। मैं तो ऐसे आदमी को माहुर दे देती।

हरखू ने अपने साथियों को ललकारा–सुन ली इन लोगों की बात कि नहीं! अब क्या खड़े मुँह ताकते हो।

इतना सुनना था कि दो चमारों ने लपककर मातादीन के हाथ पकड़ लिये, तीसरे ने झपटकर उसका जनेऊ तोड़ डाला और इसके पहिले कि दातादीन और झिंगुरीसिंह अपनी-अपनी लाठी सँभाल सकें, दो चमारों ने मातादीन के मुँह में एक बड़ी-सी हड्डी का टुकड़ा डाल दिया। मातादीन ने दाँत जकड़ लिये, फिर भी वह घिनौनी वस्तु उनके ओठों में तो लग ही गयी। उन्हें मतली हुई और मुँह आप-से-आप खुल गया और हड्डी कंठ तक जा पहुँची। इतने में खलिहान के सारे आदमी जमा हो गये; पर आश्चर्य यह कि कोई इन धर्म के लुटेरों से मुजाहिम न हुआ। मातादीन का व्यवहार सभी को नापसन्द था। वह गाँव की बहू-बेटियों को घूरा करता था, इसलिए मन में सभी उसकी दुर्गति से प्रसन्न थे। हाँ, ऊपरी मन से लोग चमारों पर रोब जमा रहे थे।

होरी ने कहा–अच्छा, अब बहुत हुआ हरखू! भला चाहते हो, तो यहाँ से चले जाओ।

हरखू ने निडरता से उत्तर दिया–तुम्हारे घर में भी लड़कियाँ हैं होरी महतो, इतना समझ लो। इस तरह गाँव की मरजाद बिगड़ने लगी, तो किसी की आबरू न बचेगी।

एक क्षण में शत्रु पर पूरी विजय पाकर आक्रमणकारियों ने वहाँ से टल जाना ही उचित समझा। जनमत बदलते देर नहीं लगती। उससे बचे रहना ही अच्छा है।

मातादीन कै कर रहा था। दातादीन ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा–एक-एक को पाँच-पाँच साल के लिए न भेजवाया, तो कहना। पाँच-पाँच साल तक चक्की पिसवाऊँगा।

हरखू ने हेकड़ी के साथ जवाब दिया–इसका यहाँ कोई गम नहीं। कौन तुम्हारी तरह बैठे मौज करते हैं। जहाँ काम करेंगे, वहीं आधा पेट दाना मिल जायगा।

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