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सदाबहार >> गोदान

गोदान

प्रेमचंद

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :327
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1442
आईएसबीएन :9788170284321

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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...


रूपा ने जिरह की–अगर वह पहले खाती है, तो क्यों मोटी नहीं है?  ठाकुर क्यों मोटे हैं? अगर ठाकुर उन पर गिर पड़ें, तो ठकुराइन पिस जायँ।

सोना ने प्रतिवाद किया–तू समझती है, अच्छा खाने से लोग मोटे हो जाते हैं। अच्छा खाने से लोग बलवान् होते हैं, मोटे नहीं होते। मोटे होते हैं, घास-पात खाने से।

‘तो ठकुराइन ठाकुर से बलवान है?’

‘और क्या। अभी उस दिन दोनों में लड़ाई हुई, तो ठकुराइन ने ठाकुर को ऐसा ढकेला कि उनके घुटने फूट गये।’

‘तो तू भी पहले आप खाकर तब जीजा को खिलायेगी?’

‘और क्या।’

‘अम्माँ तो पहले दादा को खिलाती हैं।’

‘तभी तो जब देखो तब दादा डाँट देते हैं। मैं बलवान होकर अपने मर्द को काबू में रखूँगी। तेरा मर्द तुझे पीटेगा, तेरी हड्डी तोड़कर रख देगा।’

रूपा रुआँसी होकर बोली–क्यों पीटेगा, मैं मार खाने का काम ही न करूँगी।’

वह कुछ न सुनेगा। तूने जरा भी कुछ कहा और वह मार चलेगा। मारते-मारते तेरी खाल उधेड़ लेगा।’

रूपा ने बिगड़कर सोना की साड़ी दाँतों से फाड़ने की चेष्टा की। और असफल होने पर चुटकियाँ काटने लगी।

सोना ने और चिढ़ाया–वह तेरी नाक भी काट लेगा। इस पर रूपा ने बहन को दाँत से काट खाया। सोना की बाँह लहुआ गयी। उसने रूपा को जोर से ढकेल दिया। वह गिर पड़ी और उठकर रोने लगी। सोना भी दाँतों के निशान देखकर रो पड़ी।

उन दोनों का चिल्लाना सुनकर गोबर गुस्से में भरा हुआ आया और दोनों को दो-दो घूँसे जड़ दिये। दोनों रोती हुई खेत से निकलकर घर चल दीं। सिंचाई का काम रुक गया। इस पर पिता-पुत्र में एक झड़प हो गयी।

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