लोगों की राय

सदाबहार >> गोदान

गोदान

प्रेमचंद

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :327
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1442
आईएसबीएन :9788170284321

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

164 पाठक हैं

गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...


‘तो कल से हमारे यहाँ काम करने आना पड़ेगा।’

‘अपनी ऊख बोना है महाराज, नहीं तुम्हारा ही काम करता।’

दातादीन चले गये तो गोबर ने तिरस्कार की आँखों से देखकर कहा–गये थे देवता को मनाने! तुम्हीं लोगों ने तो इन सबों का मिजाज बिगाड़ दिया है। तीस रुपए दिये, अब दो सौ रुपए लेगा, और डाँट ऊपर से बतायेगा और तुमसे मजूरी करायेगा और काम कराते-कराते मार डालेगा !’

होरी ने अपने विचार में सत्य का पक्ष लेकर कहा–नीति हाथ से न छोड़ना चाहिए बेटा; अपनी-अपनी करनी अपने साथ है। हमने जिस ब्याज पर रुपए लिए, वह तो देने ही पड़ेंगे। फिर ब्राह्मण ठहरे। इनका पैसा हमें पचेगा? ऐसा माल तो इन्हीं लोगों को पचता है।

गोबर ने त्योरियाँ चढ़ाईं–नीति छोड़ने को कौन कह रहा है। और कौन कह रहा है कि ब्राह्मण का पैसा दबा लो? मैं तो यही कहता हूँ कि इतना सूद नहीं देंगे। बैंकवाले बारह आने सूद लेते हैं। तुम एक रुपए ले लो। और क्या किसी को लूट लोगे?

‘उनका रोयाँ जो दुखी होगा?’

‘हुआ करे। उनके दुखी होने के डर से हम बिल क्यों खोदें?’

‘बेटा, जब तक मैं जीता हूँ, मुझे अपने रास्ते चलने दो। जब मैं मर जाऊँ, तो तुम्हारी जो इच्छा हो वह करना।’

‘तो फिर तुम्हीं देना। मैं तो अपने हाथों अपने पाँव में कुल्हाड़ी न मारूँगा। मेरा गधापन था कि तुम्हारे बीच में बोला–तुमने खाया है, तुम भरो। मैं क्यों अपनी जान दूँ?’ यह कहता हुआ गोबर भीतर चला गया।

झुनिया ने पूछा–आज सबेरे-सबेरे दादा से क्यों उलझ पड़े?

गोबर ने सारा वृत्तान्त कह सुनाया और अन्त में बोला–इनके ऊपर रिन का बोझ इसी तरह बढ़ता जायगा। मैं कहाँ तक भरूँगा? उन्होंने कमा-कमाकर दूसरों का घर भरा है। मैं क्यों उनकी खोदी हुई खन्दक में गिरूँ? इन्होंने मुझसे पूछकर करज नहीं लिया। न मेरे लिए लिया। मैं उसका देनदार नहीं हूँ।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book