सदाबहार >> गोदान गोदानप्रेमचंद
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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...
‘उसे तो लाया हूँ तुम्हारी सेवा करने के लिए। वह तुम्हारी क्या बराबरी करेगी?’
छोटी बीबी यह वाक्य सुन लेती है और मुँह फुलाकर चली जाती है।
दूसरे दृश्य में ठाकुर खाट पर लेटे हैं और छोटी बहू मुँह फेरे हुए जमीन पर बैठी है। ठाकुर बार-बार उसका मुँह अपनी ओर फेरने की विफल चेष्टा करके कहते हैं–मुझसे क्यों रूठी हो मेरी लाड़ली?
‘तुम्हारी लाड़ली जहाँ हो, वहाँ जाओ। मैं तो लौंड़ी हूँ, दूसरों की सेवा-टहल करने के लिए आयी हूँ।’
‘तुम मेरी रानी हो। तुम्हारी सेवा-टहल करने के लिए वह बुढ़िया है।’
पहली ठकुराइन सुन लेती हैं और झाड़ू लेकर घर में घुसती हैं और कई झाड़ू उन पर जमाती हैं। ठाकुर साहब जान बचाकर भागते हैं।
फिर दूसरी नकल हुई, जिसमें ठाकुर ने दस रुपए का दस्तावेज लिखकर पाँच रुपए दिये, शेष नजराने और तहरीर और दस्तूरी और ब्याज में काट लिये।
किसान आकर ठाकुर के चरण पकड़कर रोने लगता है। बड़ी मुश्किल से ठाकुर रुपए देने पर राजी होते हैं। जब कागज लिख जाता है और आदमी के हाथ में पाँच रुपए रख दिये जाते हैं, तो वह चकराकर पूछता है–
‘यह तो पाँच ही हैं मालिक!’
‘पाँच नहीं दस हैं। घर जाकर गिनना।’
‘नहीं सरकार, पाँच हैं!’
‘एक रुपया नजराने का हुआ कि नहीं?’
‘हाँ, सरकार!’
‘एक तहरीर का?’
‘हाँ, सरकार!’
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