लोगों की राय

सदाबहार >> गोदान

गोदान

प्रेमचंद

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :327
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1442
आईएसबीएन :9788170284321

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

164 पाठक हैं

गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...


‘उस कोठी का सुभीते से निकलना ज़रा मुश्किल है। आप जानते हैं, वह जगह बस्ती से कितनी दूर है; मगर खैर, देखूँगा। आप उसकी कीमत का क्या अन्दाजा करते हैं?’

राय साहब ने एक लाख पचीस हजार बताये। पन्द्रह बीघे जमीन भी तो है उसके साथ। खन्ना स्तम्भित हो गये। बोले–आप आज के पन्द्रह साल पहले का स्वप्न देख रहे हैं राय साहब! आपको मालूम होना चाहिए कि इधर जायदादों के मूल्य में पचास परसेंट की कमी हो गयी है।

राय साहब ने बुरा मानकर कहा–जी नहीं, पन्द्रह साल पहले उसकी कीमत डेढ़ लाख थी।’
मैं खरीददार की तलाश में रहूँगा; मगर मेरा कमीशन पाँच प्रतिशत होगा, आपसे।’

‘औरों से शायद दस प्रतिशत हो क्यों; क्या करोगे इतने रुपए लेकर?’

‘आप जो चाहें दे दीजिएगा। अब तो राजी हुए। शुगर के हिस्से अभी तक आपने न खरीदे। अब बहुत थोड़े-से हिस्से बच रहे हैं। हाथ मलते रह जाइएगा। इंश्योरेंस की पालिसी भी आपने न ली। आप में टाल-मटोल की बुरी आदत है। जब अपने लाभ की बातों का इतना टाल-मटोल है, तब दूसरों को आप लोगों से क्या लाभ हो सकता है! इसी से कहते हैं, रियासत आदमी की अक्ल चर जाती है। मेरा बस चले तो मैं ताल्लुकेदारों की रियासतें जब्त कर लूँ।’

मिस्टर तंखा मालती पर जाल फेंक रहे थे। मालती ने साफ कह दिया था कि वह एलेक्शन के झमेले में नहीं पड़ना चाहती; पर तंखा इतनी आसानी से हार माननेवाले व्यक्ति न थे। आकर कुहनियों के बल मेज पर टिककर बोले–आप जरा उस मुआमले पर फिर विचार करें। मैं कहता हूँ ऐसा मौका शायद आपको फिर न मिले। रानी साहब चन्दा को आपके मुकाबले में रुपए में एक आना भी चांस नहीं है। मेरी इच्छा केवल यह है कि कौंसिल में ऐसे लोग जायँ, जिन्होंने जीवन में कुछ अनुभव प्राप्त किया है और जनता की कुछ सेवा की है। जिस महिला ने भोग-विलास के सिवा कुछ जाना ही नहीं, जिसने जनता को हमेशा अपनी कार का पेट्रोल समझा, जिसकी सबसे मूल्यवान सेवा वे पार्टियाँ हैं, जो वह गवर्नरों और सेक्रेटरियों को दिया करती हैं, उनके लिए इस कौंसिल में स्थान नहीं है। नयी कौंसिल में बहुत कुछ अधिकार प्रतिनिधियों के हाथ में होगा और मैं नहीं चाहता कि वह अधिकार अनधिकारियों के हाथ में जाय।

मालती ने पीछा छुड़ाने के लिए कहा–लेकिन साहब, मेरे पास दस-बीस हजार एलेक्शन पर खर्च करने के लिए कहाँ है?  रानी साहब तो दो-चार लाख खर्च कर सकती हैं। मुझे भी साल में हजार-पाँच सौ रुपए उनसे मिल जाते हैं, यह रकम भी हाथ से निकल जायगी।

‘पहले आप यह बता दें कि आप जाना चाहती हैं, या नहीं?’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book