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सदाबहार >> गोदान

गोदान

प्रेमचंद

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :327
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1442
आईएसबीएन :9788170284321

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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...


‘अरे तो क्या एक पचासे का डौल भी नहीं है?’

‘कहाँ की बात हुजूर! दस मिल जायँ, तो हजार समझिए। पचास तो पचास जनम में भी मुमकिन नहीं और वह भी जब कोई महाजन खड़ा हो जायगा!’

दारोगाजी ने एक मिनट तक विचार करके कहा–तो फिर उसे सताने से क्या फायदा। मैं ऐसों को नहीं सताता, जो आप ही मर रहे हों।

पटेश्वरी ने देखा, निशाना और आगे जा पड़ा। बोले–नहीं हुजूर, ऐसा न कीजिए, नहीं फिर हम कहाँ जायँगे। हमारे पास दूसरी और कौन-सी खेती है?  

‘तुम इलाके के पटवारी हो जी, कैसी बातें करते हो?’

‘जब ऐसा ही कोई अवसर आ जाता है, तो आपकी बदौलत हम भी कुछ पा जाते हैं। नहीं पटवारी को कौन पूछता है।’

‘अच्छा जाओ, तीस रुपए दिलवा दो; बीस रुपए हमारे, दस रुपए तुम्हारे।’

‘चार मुखिया हैं, इसका ख़्याल कीजिए।’

‘अच्छा आधे-आधे पर रखो, जल्दी करो। मुझे देर हो रही है।’

पटेश्वरी ने झिंगुरी से कहा, झिंगुरी ने होरी को इशारे से बुलाया, अपने घर ले गये, तीस रुपए गिनकर उसके हवाले किये और एहसान से दबाते हुए बोले–आज ही कागद लिखा लेना। तुम्हारा मुँह देखकर रुपए दे रहा हूँ, तुम्हारी भलमंसी पर।

होरी ने रुपए लिये और अँगोछे के कोर में बाँधे प्रसन्न मुख आकर दारोगाजी की ओर चला।

सहसा धनिया झपटकर आगे आयी और अँगोछी एक झटके के साथ उसके हाथ से छीन ली। गाँठ पक्की न थी। झटका पाते ही खुल गयी और सारे रुपए जमीन पर बिखर गये। नागिन की तरह फुँकारकर बोली–ये रुपए कहाँ लिये जा रहा है, बता। भला चाहता है, तो सब रुपए लौटा दे, नहीं कहे देती हूँ। घर के परानी रात-दिन मरें और दाने-दाने को तरसें, लत्ता भी पहनने को मयस्सर न हो और अँजुली-भर रुपए लेकर चला है इज्जत बचाने! ऐसी बड़ी है तेरी इज्जत! जिसके घर में चूहे लोटें, वह भी इज्जतवाला है! दारोगा तलासी ही तो लेगा। ले-ले जहाँ चाहे तलासी। एक तो सौ रुपए की गाय गयी, उस पर यह पलेथन! वाह री तेरी इज्जत!

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