सदाबहार >> गोदान गोदानप्रेमचंद
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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...
‘कोई दवाई नहीं खाता, तो क्या किया जाय। उसके लेखे तो सारे बैद, डाक्टर, हकीम अनाड़ी हैं। भगवान् के पास जितनी अक्कल थी, वह उसके और उसकी घरवाली के हिस्से पड़ गयी।’
होरी ने चिन्ता से कहा–यही तो बुराई है उसमें। अपने सामने किसी को गिनता ही नहीं। और चिढ़ने तो बिमारी में सभी हो जाते हैं। तुम्हें याद है कि नहीं, जब तुम्हें इफ़िंजा हो गया था, तो दवाई उठाकर फेंक देते थे। मैं तुम्हारे दोनों हाथ पकड़ता था, तब तुम्हारी भाभी तुम्हारे मुँह में दवाई डालती थीं। उस पर तुम उसे हजारों गालियाँ देते थे।
‘हाँ दादा, भला वह बात भूल सकता हूँ? तुमने इतना न किया होता, तो तुमसे लड़ने के लिए कैसे बचा रहता।’
होरी को ऐसा मालूम हुआ कि हीरा का स्वर भारी हो गया है। उसका गला भी भर आया।
‘बेटा, लड़ाई-झगड़ा तो जिन्दगी का धरम है। इससे जो अपने हैं, वह पराये थोड़े ही हो जाते हैं। जब घर में चार आदमी रहते हैं, तभी तो लड़ाई-झगड़े भी होते हैं। जिसके कोई है ही नहीं, उसके कौन लड़ाई करेगा।’
दोनों ने साथ चिलम पी। तब हीरा अपने घर गया, होरी अन्दर भोजन करने चला।
धनिया रोष से बोली–देखी अपने सपूत की लीला? इतनी रात हो गयी और अभी उसे अपने सैल से छुट्टी नहीं मिली। मैं सब जानती हूँ। मुझको सारा पता मिल गया है। भोला की वह राँड़ लड़की नहीं है, झुनिया! उसी के फेर में पड़ा रहता है। होरी के कानों में भी इस बात की भनक पड़ी थी, पर उसे विश्वास न आया था। गोबर बेचारा इन बातों को क्या जाने। बोला–किसने कहा तुमसे?
धनिया प्रचंड हो गयी–तुमसे छिपी होगी, और तो सभी जगह चर्चा चल रही है। यह भुग्गा, वह बहत्तर घाट का पानी पिये हुए। इसे उँगलियों पर नचा रही है, और यह समझता है, वह इस पर जान देती है। तुम उसे समझा दो नहीं कोई ऐसी-वैसी बात हो गयी, तो कहीं के न रहोगे। होरी का दिल उमंग पर था। चुहल की सूझी–झुनिया देखने-सुनने में तो बुरी नहीं है। उसी से कर ले सगाई। ऐसी सस्ती मेहरिया और कहाँ मिली जाती है। धनिया को यह चुहल तीर-सा लगा–झुनिया इस घर में आये, तो मुँह झुलस दूँ राँड़ का। गोबर की चहेती है, तो उसे लेकर जहाँ चाहे रहे।
‘और जो गोबर इसी घर में लाये?’
तो यह दोनों लड़कियाँ किसके गले बाँधोगे? फिर बिरादरी में तुम्हें कौन पूछेगा, कोई द्वार पर खड़ा तक तो होगा नहीं।’
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