सदाबहार >> गोदान गोदानप्रेमचंद
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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...
होरी के सिर में चक्कर आ रहा था। बोला–कुछ नहीं, अच्छा हूँ।
यह कहते-कहते उसे फिर कै हुई और हाथ-पाँव ठंडे होने लगे। यह सिर में चक्कर क्यों आ रहा है? आँखों के सामने जैसे अँधेरा छाया जाता है। उसकी आँखें बन्द हो गयीं और जीवन की सारी स्मृतियाँ सजीव हो होकर हृदय-पट पर आने लगीं; लेकिन बेक्रम, आगे की पीछे, पीछे की आगे, स्वप्न-चित्रों की भाँति बेमेल, विकृत और असम्बद्ध। वह सुखद बालपन आया जब वह गुल्लियाँ खेलता था और माँ की गोद में सोता था। फिर देखा, जैसे गोबर आया है और उसके पैरों पर गिर रहा है। फिर दृश्य बदला, धनिया दुलहिन बनी हुई, लाल चुँदरी पहने उसको भोजन करा रही थी। फिर एक गाय का चित्र सामने आया, बिलकुल कामधेनु-सी। उसने उसका दूध दुहा और मंगल को पिला रहा था कि गाय एक देवी बन गयी और...
उसी मजदूर ने फिर पुकारा–दोपहरी ढल गयी होरी, चलो झौवा उठाओ। होरी कुछ न बोला। उसके प्राण तो न जाने किस-किस लोक में उड़ रहे थे। उसकी देह जल रही थी, हाथ-पाँव ठंडे हो रहे थे। लू लग गयी थी।
उसके घर आदमी दौड़ाया गया। एक घंटा में धनिया दौड़ी हुई आ पहुँची। शोभा और हीरा पीछे-पीछे खटोले की डोली बनाकर ला रहे थे।
धनिया ने होरी की देह छुई, तो उसका कलेजा सन से हो गया। मुख काँतिहीन हो गया था।
काँपती हुई आवाज से बोली–कैसा जी है तुम्हारा?
होरी ने अस्थिर आँखों से देखा और बोला–तुम आ गये गोबर? मैंने मंगल के लिये गाय ले ली है। वह खड़ी है, देखो।
धनिया ने मौत की सूरत देखी थी। उसे पहचानती थी। उसे दबे पाँव आते भी देखा था, आँधी की तरह भी देखा था। उसके सामने सास मरी, ससुर मरा, अपने दो बालक मरे, गाँव के पचासों आदमी मरे। प्राण में एक धक्का-सा लगा। वह आधार जिस पर जीवन टिका हुआ था, जैसे खिसका जा रहा था, लेकिन नहीं यह धैर्य का समय है, उसकी शंका निमूर्ल है, लू लग गयी है, उसी से अचेत हो गये हैं।
उमड़ते हुए आँसुओं को रोककर बोली–मेरी ओर देखो, मैं हूँ, क्या मुझे नहीं पहचानते,?
होरी की चेतना लौटी। मृत्यु समीप आ गयी थी; आग दहकनेवाली थी। धुआँ शान्त हो गया था। धनिया को दीन आँखों से देखा, दोनों कोनों से आँसू की दो बूँदें ढुलक पड़ी। क्षीण स्वर में बोला–मेरा कहा सुना माफ करना धनिया! अब जाता हूँ। गाय की लालसा मन में ही रह गयी। अब तो यहाँ के रुपए क्रिया-करम में जायँगे। रो मत धनिया, अब कब तक जिलायेगी? सब दुर्दशा तो हो गयी। अब मरने दे।
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