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सदाबहार >> गोदान

गोदान

प्रेमचंद

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :327
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1442
आईएसबीएन :9788170284321

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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...


मिर्ज़ा को मेहता की हठधर्मी पर दुःख हुआ। इतना पढ़ा-लिखा विचारवान् आदमी इस तरह की बातें करे! समाज की व्यवस्था क्या आसानी से बदल जायगी? वह तो सदियों का मुआमला है। तब तक क्या यह अनर्थ होने दिया जाय? उसकी रोक-थाम न की जाय, इन अबलाओं को मर्दों की लिप्सा का शिकार होने दिया जाय? क्यों न शेर को पिंजरे में बन्द कर दिया जाय कि वह दाँत और नाखून होते हुए भी किसी को हानि न पहुँचा सके। क्यों उस वक्त तक चुपचाप बैठा रहा जाय, जब तक शेर अहिंसा का व्रत न ले ले? दौलतवाले और जिस तरह चाहें अपनी दौलत उड़ायें, मिर्ज़ाजी को गम नहीं। शराब में डूब जायँ, कारों की माला गले में डाल लें, किले बनवायें धर्मशालायें और मसजिदें खड़ी करें, उन्हें कोई परवाह नहीं। अबलाओं की जिन्दगी न खराब करें। यह मिर्ज़ाजी नहीं देख सकते। वह रूप के बाजार को ऐसा खाली कर देंगे कि दौलतवालों की अशर्फिर्यों पर कोई थूकनेवाला भी न मिले। क्या जिन दिनों शराब की दूकानों की पिकेटिंग होती थी, अच्छे-अच्छे शराबी पानी पी-पीकर दिल की आग नहीं बुझाते थे?

मेहता ने मिर्ज़ा की बेवकूफी पर हँसकर कहा–आपको मालूम होना चाहिए कि दुनिया में ऐसे मुल्क भी हैं जहाँ वेश्याएँ नहीं हैं। मगर अमीरों की दौलत वहाँ भी दिलचस्पियों के सामान पैदा कर लेती है।

मिर्ज़ाजी भी मेहता की जड़ता पर हँसे–जानता हूँ मेहरबान, जानता हूँ। आपकी दुआ से दुनिया देख चुका हूँ; मगर यह हिन्दुस्तान है, यूरोप नहीं है।

‘इंसान का स्वभाव सारी दुनिया में एक-सा है।’

‘मगर यह भी मालूम रहे कि हर-एक कौम में एक ऐसी चीज होती है, जिसे उसकी आत्मा कह सकते हैं। असमत (सतीत्व) हिन्दुस्तानी तहजीब की आत्मा है।’

‘अपने मुँह मियाँ-मिट्ठू बन लीजिए।’

‘दौलत की आप इतनी बुराई करते हैं, फिर भी खन्ना की हिमायत करते नहीं थकते। न कहिएगा।’

मेहता का तेज विदा हो गया। नम्र भाव से बोले–मैंने खन्ना की हिमायत उस वक्त की है, जब वह दौलत के पंजे से छूट गये हैं, और आजकल उसकी हालत आप देखें, तो आपको दया आयेगी। और मैं क्या हिमायत करूँगा, जिसे अपनी किताबों और विद्यालय से छुट्टी नहीं; ज्यादा-से-ज्यादा सूखी हमदर्दी ही तो कर सकता हूँ। हिमायत की है मिस मालती ने कि खन्ना को बचा लिया। इंसान के दिल की गहराइयों में त्याग और कुबार्नी की कितनी ताकत छिपी होती है, इसका मुझे अब तक तजरबा न हुआ था। आप भी एक दिन खन्ना से मिल आइए। फूला न समाइएगा। इस वक्त उसे जिस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है, वह हमदर्दी है। मिर्ज़ा ने जैसे अपनी इच्छा के विरुद्ध कहा–आप कहते हैं, तो जाऊँगा। आपके साथ जहन्नुम में जाने में भी मुझे उज्र नहीं; मगर मिस मालती से तो आपकी शादी होनेवाली थी। बड़ी गर्म खबर थी। मेहता ने झेंपते हुए कहा–तपस्या कर रहा हूँ। देखिए कब वरदान मिले।

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