| आलोचना >> रेणु का है अन्दाजे बयां और रेणु का है अन्दाजे बयां औरभारत यायावर
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रेणु के अंदाज़े-बयाँ को अपने ही ढंग से प्रस्तुत करने वाली यह अनोखी पुस्तक है।
फणीश्वरनाथ रेणु का जीवन और साहित्य जितना बहुआयामी है उतना ही रसग्राही। रेणु के व्यक्तित्व-कृतित्व के विवध पक्षों की गहन खोज करने में भारत यायावर ने अपने जीवन के तीस वर्ष लगा दिए हैं। उनके सम्पादन में अब तक रेणु की लगभग बीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से 'रेणु रचनावली' का सम्पादन किया है, जो बेहद प्रशंसित हुआ है। रेणु पर अपनी लम्बी खोज-यात्रा के उपरान्त उन्होंने 'रेणु का है अंदाज़े-बयाँ और' लिखी है। इस पुस्तक में रेणु के जीवन और साहित्य के नए और अनछुए पहलुओं की तलाश की गई है। रेणु पर यह पहली पुस्तक है जिसमें विस्तार से उनकी रचनाओं की पड़ताल की गई है। रेणु के साहित्य में उपन्यास एवं कहानी के साथ ही रिपोर्ताज सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विधा है, जिस पर विस्तार से विवेचन किया गया है। भारत यायावर की इस पुस्तक में रेणु के जीवन और साहित्य के गहन अनुसंधानपरक विवेचन के बावजूद सबसे महत्त्वपूर्ण है एक जीवन्त यानी हँसती-बतियाती हुई रचनात्मक भाषा। इस भाषा का एक अपना ही स्वाद है, साथ ही अपना ही रंग है। इसके कारण यह पुस्तक रोचक, दिलचस्प और बेहद पठनीय है। इस पुस्तक के परिशिष्ट में भारत यायावर ने फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन-परिचय जोड़ दिया है एवं दो असंकलित रचनाओं 'जै गंगा' एवं 'डायन कोशी' को भी संकलित कर दिया है, इससे इस पुस्तक की महत्ता और अधिक बढ़ गई है। कुल मिलाकर, रेणु के अंदाज़े-बयाँ को अपने ही ढंग से प्रस्तुत करने वाली यह अनोखी पुस्तक है।
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