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प्रतिनिधि कहानियाँ: भगवतीचरण वर्मा

भगवतीचरण वर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :163
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14162
आईएसबीएन :9788126703333

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इन कहानियों को पढ़ते हुए हमें ऐसा लगने लगता है कि हम अपने ही आसपास की जीवित सच्चाइयों और वर्गीय विविधताओं से गुजर रहे हैं।

इस कथाकृति में सुविख्यात उपन्यासकार भगवतीचरण वर्मा की कुछ ऐसी चुनी हुई कहानियाँ दी गई हैं जिनका न केवल हिंदी में, बल्कि समूचे भारतीय कथा-साहित्य में उल्लेखनीय स्थान है। इन कहानियों का उद्देश्य पाठक को व्यक्ति-मन की गढ़ भावनाओं अथवा उसकी अवचेतनगत बारीकियों में उलझाना नहीं है, बल्कि उद्देश्य है समकालीन भारतीय समाज के संघटक अनेकानेक व्यक्‍ति-चरित्रों का उद्‌घाटन। यही वे चरित्र हैं जो व्यक्ति-रूप में अपने पूरे समाज की मुख्य प्रवृत्तियों और स्थितियों को प्रतिबिंबित करने लगते हैं; और इन्हीं के माध्यम से हम भारतीय समाज के प्रमुख अंतर्विरोधों तथा उसकी खूबियों और खामियों से परिचित होते हैं। इन कहानियों को पढ़ते हुए हमें ऐसा लगने लगता है कि हम अपने ही आसपास की जीवित सच्चाइयों और वर्गीय विविधताओं से गुजर रहे हैं। इतिहास इन कहानियों में सीधे-सीधे नहीं आता, बल्कि अपनी भूलों, हताशाओं और राजसी मूर्खताओं पर 'सटायर' करते हुए आता है। वस्तुत: इन कहानियों की चरित्रप्रधान विषय-वस्तु और व्यंग्यात्मक भाषा-शैली प्रेमचंदोत्तर हिंदी-कहानी के एक दौर की खास पहचान है। इस नाते इन कहानियों का एक ऐतिहासिक महत्त्व भी है।

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