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कविता संग्रह >> मेघदूत मेघदूतमृत्युंजय सिंह
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पौराणिक चरित्रों और प्रतीकों को पाद-टिप्पणियों और प्राचीन ग्रंथो के हवाले से समझाया गया है, उससे यह पुस्तक और भी पठनीय हो जाती है।
भारतीय संस्कृत साहित्य की अमूल्य थाती 'मेघदूत' प्रकृति तथा विपरीत परिस्थितियों में फंसे एक मनुष्य के अवधेतन रिश्ते का प्रतीक है। कालिदास ने अपनी यह महान रचना एक मिथकीय घटना के आधार पर बुनी है, जिसमे भगवान् कुबेर का सेवक और अनन्त यौवन के वरदान से विभूषित यक्ष अपनी यक्षिणी के मोह के बशीभूत हो अपने स्वामी के लिए रोज सुबह ताजे फूल तोड़ने का अपना कर्तव्य भुला बैठता है। इस पर क्रोधित हो कुबेर यक्ष को एक वर्ष के लिए जंगल में सन्यासी का जीवन बिताने के लिए भेज देता है। एकांतवास के दौरान जहाँ यक्ष का ध्यान प्रकृत और उसके तत्त्वों की और जाता है, वहीँ उसके शरीर और एकाकी ह्रदय को बदलते मौसमों की मार भी झेलनी पड़ती है। परिणामस्वरुप यक्ष विभ्रम का शिकार हो जाता है। उसे प्रकृति की तमाम वस्तुओं में मानवीय क्रियाओं का आभास होने लगता है और वह उनमे अपनी भावनाओं का मनोछ्वियों का प्रतिबिम्ब देखने लगता है। आकाश में छाये भरी बादलों में उसे अपना एक दोस्त दिखाई देता है जो दूर हिमालय में स्थित अलकानगरी में उसके लिए अवसादग्रस्त उसकी प्रेमिका तक उसका सन्देश लेकर जा सकता है। इस कृति में मृत्युंजय ने इतिहास और विरासत की छवियों को जिस अनूठे ढंग से समकालीन संदर्भो में पकड़ा है, उसके चलते यह पौराणिक नाट्य एक गीतात्मक प्रस्तुति बन गया है। पौराणिक चरित्रों और प्रतीकों को पाद-टिप्पणियों और प्राचीन ग्रंथो के हवाले से समझाया गया है, उससे यह पुस्तक और भी पठनीय हो जाती है।
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