पत्र एवं पत्रकारिता >> कहने को बहुत कुछ था कहने को बहुत कुछ थाप्रभाष जोशी
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प्रभाष जोशी की इस पुस्तक में उनके सम्पूर्ण लेखन से चुनकर प्रतिनिधि लेखों का संग्रह किया गया है।
प्रभाष जोशी की इस पुस्तक में उनके सम्पूर्ण लेखन से चुनकर प्रतिनिधि लेखों का संग्रह किया गया है। वे एक समाजधर्मी पत्रकार थे जिन्होंने अपने समय के बनते इतिहास का दो टूक विश्लेषण किया। उसके साथ ही अपने सक्रिय वैचारिक पहल से समकालीन इतिहास को बनाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज के समय में ऐसे पत्रकार और समाज चिन्तक की कमी एक गतिरोध और यथास्थिति का माहोल बना रही है। ऐसे में प्रभाष जोशी के ये लेख एक नई पहल के लिए प्रेरित करते हैं। पुस्तक में इन अध्यायों के अंतर्गत लेख रखे गए हैं, उनके शीर्षक हैं : पत्रकारिता है सदाचारिता, अपनी हिंदी का हाल, शिखरों के आसपास, राजमंच का नेपथ्य, खेल का सौन्दर्यशास्त्र तथा बार-बार लौटकर जाता हूँ नर्मदा। ये शीर्षक ही पुस्तक में संकलित लेखो के कथ्य बयान कर देते हैं। एक बार फिर से प्रभाष जोशी को पढना आपको इस मुश्किल समय से नए सिरे से परिचित कराएगा। सामाजिक बदलाव की पहल के लिए प्रेरित करेगा।
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