उपन्यास >> हमज़ाद हमज़ादमनोहर श्याम जोशी
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हमजाद' के चरित्र इस थोड़ी-सी इंसानियत से भी परे जा चुके हैं जिनके भीतर-बाहर को जोशीजी ने अपने सघन पाठ में अदभुत ढंग से रूपायित किया है।
हमजाद' कहानी है उस 'कमीनगी' की जो अपने ठोस आत्मविश्वास के बल पर सबसे चोट हमारे उन विभ्रमों पर करती है हिन्हे हम अपने 'अबोध आशावाद' के चलते अपने इर्द-गिर्द पाले रखते हैं। इसे पढते हुए आप अचानक असहाय महसूस करेंगे और एक रूहानी शैथिल्य आपको घेर लेगा; आप पाएँगे कि आपका समय वास्तव में उससे कहीं ज्यादा घटिया, क्रूर और लिजलिजा है जितना आप आज तक अफवाहों और अख़बारों के माध्यम से जानते आए हैं। बेशक यह कथा उम्मीद का अंत कर देनेवाली है, इसका एक भी चरित्र ऐसा नहीं जो सीख देता हो, 'सुन्दर भविष्य' का कोई सपना बुनता हो; सब अपने-अपने नरक में इतने गहरे डूबे हुए हैं कि उन्हें अपने अलावा किसी और इकाई का खयाल तक नहीं आता। लेकिन क्या थोड़ी-सी झूठी इंसानियत के साथ यह हम ही नहीं हैं? 'हमजाद' के चरित्र इस थोड़ी-सी इंसानियत से भी परे जा चुके हैं जिनके भीतर-बाहर को जोशीजी ने अपने सघन पाठ में अदभुत ढंग से रूपायित किया है।
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