कविता संग्रह >> दो पंक्तियों के बीच दो पंक्तियों के बीचराजेश जोशी
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अपने मनुष्य होने के अहसास और उसे बचाए रखने का जद्दोजहद हैं राजेश की कविताएँ।
‘दो पंक्तियों के बीच’ राजेश जोशी की कविताओं का एक ऐसा संग्रह है जिसमें राजेश जोशी भाषा को लिरिकल बनाते हुए उस संगीत तक ले जाते हैं जहाँ से अर्थों की उड़ान आरम्भ होती है। इस संग्रह की कविताएँ इस दृष्टि से भी उल्लेखनीय है कि इसमें विषय की विविधता ही नहीं, प्रखर राजनीतिक चेतना के साथ मार्क्सवाद का वह संस्पर्श भी है जिससे किसी कवि की संवेदना गहरी होती है। राजेश जोशी अपने इस संग्रह की कविताओं में थियेटर की सभी तकनीकें प्रश्नाधारित करते प्रतीत होते हैं किन्तु सराहनीय बात यह है कि ऐसा करते हुए वे कविता की मूल प्रतीज्ञा, सूक्ष्मता और संवेदनशीलता से नहीं डिगते। राजेश की कविता की ताक़त रेटारिक का अर्थ ही बदल देती है। वह देखते-देखते भाषा को वस्तु और वस्तु को उसकी अन्तर्वस्तु में बदल देती है। राजेश की राजनीतिक चेतना किताबी नहीं है उनके मन्तव्य स्पष्ट हैं। निष्कर्षों को लेकर दुविधा नहीं है। राजेश की राजनीतिक कविताएँ बारीकी और नफ़ासत का नमूना पेश करती हैं। समय, स्थान और गतियों के अछूते सन्दर्भों से भरी हैं राजेश जोशी की कविताएँ। इनमें काल का बोध गहरा और आत्मीय है। अपने मनुष्य होने के अहसास और उसे बचाए रखने का जद्दोजहद हैं राजेश की कविताएँ।
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