कहानी संग्रह >> चार यार आठ कहानियाँ चार यार आठ कहानियाँदूधनाथ सिंह
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यह हिंदी कहानी के उस दौर का पुनर्पाठ है जब लेखक-मानस किन्ही सिद्ध, स्वीकृत और स्थापित रूढ़ियों का अनुसरण नहीं कर रहा था
चार यारों की आठ कहानियों की यह प्रस्तुति हमारे चार बड़े लेखकों की समवयस्क-समकालीन रचना-यात्रा को एक भेंट तो है ही, उससे ज्यादा यह हिंदी कहानी के उस दौर का पुनर्पाठ है जब लेखक-मानस किन्ही सिद्ध, स्वीकृत और स्थापित रूढ़ियों का अनुसरण नहीं कर रहा था बल्कि एक युवा होते विशाल स्वतंत्र देश की तमाम अशायताओं-अपूर्णताओं के बीच खड़ा अपनी रचनात्मक 'क्वेस्ट' में अपने आन्तरिक और बाह्य विस्तार को भाषा में पकड़ने का जी-तोड़ प्रयत्न कर रहा था। संपादक-आलोचक-पाठक-पोषित फार्मूलों की सुविधा का ईजाद शायद इस दौर के काफी बाद की घटना है। ये कहानियाँ और इन कहानियों के रचनाकार भाषा की सीमाओं और अनुभव की असीमता, रूढ़ियों की आसानियत और अभिव्यक्ति के दुर्वह संकल्प के बीच तने तारों पर सधे खड़े 'आइकंस' हैं, भविष्य ने जिनसे उतना नहीं सीखा हिटना सीखना चाहिए था। अंतर्बाहय अन्वेषण की जिस मूल वृति के चलते ये कहानियां अविष्कार की तरह घटित होती थीं, वही सबसे मूल्यवान चीज आगे की रचनात्मकता में गहनतर होती नहीं दिखती। नई पीढ़ियों के लिए लगभग दस्तावेजी यह प्रस्तुति लेखकीय मित्रताओं के लिहाज से भी उन्हें एक ज्यादा उजले परिसर में आने की दावत है जहाँ स्पर्द्धाओं के 'टैक्स' खुली साँस लेने के लिए पर्याप्त अंतराल देते हुए स्थित होते हैं।
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