लोगों की राय

कविता संग्रह >> तुम हो मुझमें

तुम हो मुझमें

पुष्पिता

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :162
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13654
आईएसबीएन :9788183616058

Like this Hindi book 0

‘तुम हो मुझमें’ संवेदनशील कवयित्री पुष्पिता का महत्त्वपूर्ण कविता–संग्रह है।

‘तुम हो मुझमें’ संवेदनशील कवयित्री पुष्पिता का महत्त्वपूर्ण कविता–संग्रह है। महत्त्वपूर्ण इस अर्थ में कि इन कविताओं में आकुल आत्मीयता और राग–विराग के जो उदात्त आशय हैं वे पाठक के शब्दबोध में प्रीतिकर विस्मय उपजाते हैं। प्रेम समस्त कविताओं का बीज शब्द है। प्रेम के अगणित अर्थों का अनुधावन करते हुए पुष्पिता ने अनुभवों, भावों व संवादों का सान्द्र आस्वाद सिरजा है। संग्रह की एक कविता में वे कहती हैं– ‘प्रेम शब्दों से परे है शब्दकोशों से बहिष्कृत मन के अन्तःपुर का पाहुन है वह केवल हृदय से– हार्दिकता से काम्य।’ इन कविताओं का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है समकालीन चिन्तन व चेतना से सुगठित सम्पृक्ति। प्रचलित विमर्शों के सूत्र उनके आन्तरिक सत्यों के साथ सहेजे गए हैं। सतह पर तिरते मूल्यों व निष्कर्षों से कवयित्री की सहमति नहीं है। ‘जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ’ को चरितार्थ करके शब्दार्थ के अगम को सुगम बनाया गया है। यह कविता–संग्रह प्रेम, मैत्री, साहचर्य, प्रकृति, गोचर– अगोचर, शब्द–शब्दातीत को उनकी मौलिकता में आलोकित करता है। पुष्पिता के पास भाषा और शिल्प की समृद्धि है। ‘तुम्हें देखने के बाद/छूट जाता है तुम्हारा देखना, मुझमें’–के स्वर में कहें तो ये कविताएँ पढ़कर पाठकों के मन में इनका बहुत कुछ छूट जाएगा। जीवन को समग्रता में सँजोती रचनाएँ ‘तुम हो मुझमें’ की उपलब्धि हैं।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book