पत्र एवं पत्रकारिता >> टेलीविजन की भाषा टेलीविजन की भाषाहरीश चन्द्र बर्णवाल
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लेखक के अनुभव और कई साल तक शौकिया तौर पर लिखे गए नोट पुस्तक का आधार हैं, लिहाजा विविधता के स्तर पर यह पुस्तक समृद्ध है और छात्रों के लिए उपयोगी।
किसी भी न्यूज चैनल या उसमें योगदान दे रहे रिपोर्टरों- एडिटरों की कामयाबी इसी में होती है कि वे खबरें पेश करने के लिए किस मौके पर किस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। कौन से हैं वे शब्द और क्या असर होता है उनका, ऐसी ही तमाम बातों को इस किताब में समझाया गया है।
- नवभारत टाइम्स
खबर को सीधे-सीधे शब्दों में पिरोना भी एक कला है, जिसे प्रस्तुत पुस्तक में उदाहरणों समेत समझाने का प्रयास किया गया है। भाषा के सरल रूप को कैसे टीवी खबर की दुनिया में इस्तेमाल किया जाता है, यहां पता चलता है।
- हिन्दुस्तान
हिन्दी में टीवी पत्रकारिता की भाषा पर स्तरीय किताबें बहुत कम उपलब्ध हैं। ऐसे ही छात्रों की परेशानी को देखते हुए हरीश चंद्र बर्णवाल ने यह किताब लिखी है।
- प्रभात खबर
इस विषय पर इससे पहले ऐसी कोई पुस्तक नहीं थी जो टेलीविजन पत्रकारिता की भाषा की मुकम्मल जानकारी दे सके। खबरिया चैनलों के मौजूदा पत्रकारों और भविष्य में इस पेशे में आने के अभिलाषी पत्रकारों के साथ-साथ गैर टीवी पत्रकारों के लिए भी यह बहुत उपयोगी है।
- राष्ट्रीय सहारा
अगर किसी को न्यूज चैनल में काम करना है तो इस किताब के जरिये टेलीविजन की दुनिया की भाषा से परिचित हो सकेंगे।
- सन्मार्ग
लेखक के अनुभव और कई साल तक शौकिया तौर पर लिखे गए नोट पुस्तक का आधार हैं, लिहाजा विविधता के स्तर पर यह पुस्तक समृद्ध है और छात्रों के लिए उपयोगी।
- कादम्बिनी
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