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शाम का पहला तारा

जोहरा निगाह

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 13633
आईएसबीएन :9788183613378

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इस किताब में शामिल नज्‍में और गजलें उनकी दृष्टि की व्यापकता और गहराई की गवाह हैं।

शुरुआती वक्त में जब जोहरा निगाह मुशायरों में अपनी गजलें पड़तीं तो लोग कहा करते थे कि ये दुबली-पतली लड़की इतनी उम्दा शायरी कर कैसे लेती है, ज़रूर कोई बुजुर्ग है जो इसको लिखकर देता होगा; लेकिन बाद में सबने जाना कि उनका सोचना सही नहीं था। छोटी-सी उम्र में मुशायरों में अपनी धाक जमाने के बाद उन्होंने दूसरा क़दम सामाजिक सच्चाइयों की खुरदरी जुमीन पर रखा; यही से उनकी नज्‍़म की भी शुरुआत होती है जो शायरा की आपबीती और जगबीती के मेल से एक अलग ही रंग लेकर आती है और 'मुलायम गर्म समझौते की चादर', 'कसीदा-ए-बहार' तथा 'नया घर' जैसी नज्में वजूद में आती हैं। जोहरा निगाह आज पाकिस्तान के पहली पंक्ति के शायरों में गिनी जाती हैं; 'शाम का पहला तारा' उनकी पहली किताब थी, जिसे भारत और पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर सराहा गया था। जोहरा निगाह औरत की जबान में दुनिया के बारे में लिखती हें, फैमिनिस्ट कहा जाना उन्हें उतना पसन्द नहीं है। वे ऐसे किसी वर्गीकरण के हक में नहीं हैं। इस किताब में शामिल नज्‍में और गजलें उनकी दृष्टि की व्यापकता और गहराई की गवाह हैं। दिल गुज़रगाह है आहिस्ता खरामी के लिए तेज गायी को जो अपनाओ तो खो जाओगे इक जरा देर ही पलकों को झपक लेने दो इस कदर गौर से देखोगे तो सो जाओगे।

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