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पंडवानी: महाभारत की एक लोक नाट्य शैली

निरंजन महावर

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :116
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13581
आईएसबीएन :9788183616782

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पंडवानी' एकपात्रीय नाट्यरूप है जिसे पुरुष एवं महिलाएँ दोनों वर्गों के कलाकार प्रस्तुत करते हैं

'पंडवानी' छत्तीसगढ़ का प्रमुख लोकनाट्य है जो महान आख्यान 'महाभारत' पर केन्द्रित है। यह एकपात्रीय नाट्यरूप है जिसे पुरुष एवं महिलाएँ दोनों वर्गों के कलाकार प्रस्तुत करते हैं। 'पंडवानी' का स्वरूप आरम्भ में गाथा रूप में था, जिसे परधान गोंड गाते थे। परधानों से यह गाथा सम्पूर्ण गोंडवाना में प्रचलित हुई। कलाकारों की एक अन्य घुमन्तू जाति देवारों ने इसे परधानों से अपनाया और उनके द्वारा यह सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में फैल गई। शनै:-शनै: इस गाथा का विकास 19वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में नाट्यरूप में होने लगा और बीसवीं शताब्दी में पूर्ण रूप से नाट्यरूप में विकसित होकर स्थापित हो गई। हालांकि वह स्वरूप आज भी मंडला-डिंडोरी क्षेत्र में विद्यमान है। कालान्तर में इस नाट्यरूप की विकास-यात्रा में गायकों ने सबल सिंह चौहान के 'महाभारत' को आधार बना लिया और उसके गोंड कथानक का परित्याग कर दिया। वर्तमान में, छत्तीसगढ़ में, पंडवानी का विस्तार हो रहा है और इस विकासमान धारा में पंडवानी के दर्जनों कलाकार सक्रिय हैं।

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