लोगों की राय

आलोचना >> निराला और मुक्तिबोध: चार लम्बी कविताएं

निराला और मुक्तिबोध: चार लम्बी कविताएं

नन्दकिशोर नवल

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13574
आईएसबीएन :8171195210

Like this Hindi book 0

नवल ने बड़ी सूक्ष्मता से चारों लंबी कविताओं के शिल्पगत वैशिष्टय को उद्‌घाटित करते हुए उनकी उस अंतर्वस्तु पर प्रकाश डाला है

हिंदी में लंबी कविता का इतिहास नया नहीं है, भले उसे पारिभाषिक अभिधा मुक्तिबोध की लंबी कविताओं से प्राप्त हुई हो। पुराने कवियों को छोडू दें, तो लंबी कविता द्विवेदी-युग के कवियों से लेकर समवर्ती युग के कवियों तक ने लिखी हे। हिंदी के सुपरिचित युवा आलोचक नंदकिशोर नवल ने अध्ययन के लिए चार लंबी कविताएँ चुनी हैं। उनमें से दो निरालाकृत है और दो मुक्तिबोधकृत। कहने की आवश्यकता नहीं किए ये चारों कविताएँ हिंदी की चर्चित और विवादास्पद ही नहीं, महान कविताएँ भी हैं, जिनके सोपानों पर चरण रखते हुए हिंदी कविता ने ऊँचाई प्राप्त की है। लंबी कविता का संबंध निश्चय ही केवल आकार से न होकर प्रकार से भी है। इसे संयोग ही कहेंगे कि लेखक द्वारा चुनी गई चारों कविताएँ चार तरह की हैं। 'सरोज-स्मृति' के चित्रों को यदि स्मृति का सूत्र गुंफित करता है, तो 'राम की शक्ति-पूजा' कथा के सहारे आगे बढ़ती है। 'ब्रह्मराक्षस' और 'अँधेरे में' दोनों ही फैंटास्टिक कविताएँ हैं, लेकिन एक की फैंटेसी जहाँ एक अखंड रूपक के रूप में है, वहाँ दूसरी की फैंटेसी एक पूरी चित्रशाला है। नवल ने बड़ी सूक्ष्मता से चारों लंबी कविताओं के शिल्पगत वैशिष्टय को उद्‌घाटित करते हुए उनकी उस अंतर्वस्तु पर प्रकाश डाला है, जोकि उससे अभिन्न है। समकालीन हिंदी आलोचना में रचना से साक्षात्कार की बहुत बात की जाती है, लेकिन उसका सामना होने पर प्राय: आलोचक बगल से निकल जाते हैं। नवल ने रचना कै अंतर्लोक में प्रवेश करते हुए उसके उस बृहत्तर संदर्भ को हमेशा याद रखा है, जिसमें ही कोई रचना अपनी सार्थकता अथवा प्रासंगिकता प्राप्त करती है। 'निराला और मुक्तिबोध : चार लंबी कविताएँ' नामक उनकी यह नवीनतम आलोचना-पुस्तक हिंदी कविता के मर्मग्राहियों के लिए निश्चय ही उपयोगी सिद्ध होगी।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book