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नारी कामसूत्र

विनोद वर्मा

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :343
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13567
आईएसबीएन :9788183615242

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काम को आत्मज्ञान की चरम सीमा तक ले जाना ही इस पुस्तक का ध्येय है


आभार
मैं गुरुओं के गुरु पातंजलि को सम्मान तथा श्रद्धांजलि प्रस्तुत करती हूँ जिनसे मैंने सूत्रों की रचना-शैली सीखी है। उसकी तर्कसंगत स्पष्टता ने मुझे इस विषय को वर्तमान रूप में रचने की प्रेरणा दी है।

मैं अपने पिता के प्रति अत्यंत कृतज्ञ हूँ जिन्होंने मुझे साहस तथा शक्ति विकसित करने की शिक्षा दी तथा मुझे यह समझाया कि यह जीवन में सफलता की कुंजी है। इन सिद्धांतों के कारण मैं जीवन में कठोरतम परिस्थितियों से जूझने में सफल हुई, तथा मुझे ऐसी कोई भी स्थिति स्मरण नहीं है जब मुझे नारी होने के कारण स्वयं को छोटा या असहाय महसूस करना पड़ा हो। इन सिद्धांतों तथा मूल्यों के कारण मैं भरपूर जीवन जी रही हूँ तथा इनके बिना इस पुस्तक की रचना करना ही संभव नहीं था।
मैं डॉ. कपिला वात्स्यायन को, जो 'इंदिरा गाँधी नेशनल सेंटर फॉर दी आर्ट्स' में शिक्षा निदेशक हैं, उनकी प्रेरणात्मक चर्चाओं के लिए धन्यवाद देती हूँ। मैं उसी केंद्र के डॉ. एन.डी. शर्मा की भी ऋणी हूँ जिन्होंने सूत्रों का हिंदी में पुनरीक्षण किया। मैं अपने निम्नलिखित मित्रों के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता प्रकट करती हूँ :
संपादकीय सहायता के लिए महेंद्र कुलश्रेष्ठ, तथा इस पुस्तक में चित्रण के लिए मैं अपने भाई कुलदीप (कुकू) की आभारी हूँ जिसने योगासन चित्र खींचे। कंप्यूटर चित्र बनाने के लिए अरुण कुंडालिया की। प्रो. रेखा झाँझी की जिन्होंने मुझे अपने लघु चित्रों को प्रयोग करने की अनुमति दी तथा भारतीय पुरातत्त्व पर्यवेक्षण की आभारी हूँ जिसके सौजन्य से मंदिर मूर्तिकला के चित्र प्राप्त हो सके।
मैं सन् १९८६ से इस शोध परियोजना पर कार्यरत हूँ। इस क्षेत्र में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए मुझे विभिन्न देशों से, विभिन्न धर्म-संप्रदायों के तथा समाज के लिए भिन्न-भिन्न तबकों से सूचनाएँ तथा डाटा संग्रह करने पड़े। मैं ऐसे सभी व्यक्तियों की भी हार्दिक रूप से कृतज्ञ हूँ जिन्होंने बिना हिचक अपने व्यक्तिगत अनुभव, विचार तथा सुख-दुख में मुझे अपना भागीदार बनाया।
-विनोद वर्मा

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