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संस्मरण >> लौट आ ओ धार

लौट आ ओ धार

दूधनाथ सिंह

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13534
आईएसबीएन :8171192428

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शमशेर का जीवन और उनकी कविता -दोनों ही अति ठोस, कटु सत्य से संधानित, अति-साधारण को असाधारण पारलौकिकता तक उठा देने के राग से अनुरंजित हैं

पन्त अपने को आश्वस्त करते हुए भी आश्वस्त नहीं होते। अकेलेपन से डरते हैं। दु :ख से भागते हैं। नर्वस, होते हैं। शरीर और आत्मा के क्षय से उन्हें डर लगता है। भीतर से अपनी वाणी के प्रति ही अविश्वास है। और जैसे-जैसे यह अविश्वास बढ़ता जाता है, कविता में वे 'लाउड' होते जाते हैं। वे कभी आगे, कभी पीछे, दांयें-बायें चक्कर काटते हैं। वे मुक्ति चाहते हैं, अपने भीतर के बंजरपन से। इस प्रयत्न में वे दिन-रात लिखते चले जाते हैं। संग्रह पर संग्रह आते हैं और इजहार करते हैं कि तुम्हारी मुक्ति अब सम्भव नहीं है। शमशेर का जीवन और उनकी कविता -दोनों ही अति ठोस, कटु सत्य से संधानित, अति-साधारण को असाधारण पारलौकिकता तक उठा देने के राग से अनुरंजित हैं। वे कविता में प्रेम और प्रेम में कविता खोजते और साधते हैं। उनके लिए यह एक 'अजपा-जाप' की तरह है। सम्पूर्ण अस्तित्व में घुला, नाभि से उठकर कंठ तक थरथराता हुआ... .निरंतर एक जोगेश्वर भाव।

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