इतिहास और राजनीति >> कट्टरता के दौर में कट्टरता के दौर मेंअरुण कुमार त्रिपाठी
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बीसवीं सदी के भारी उथल-पुथल भरे आखिरी दशक पर केन्द्रित यह पुस्तक अपने युग की प्रमुख प्रवृत्तियों पर बेवाक टिप्पणियाँ करती हैं
बीसवीं सदी के भारी उथल-पुथल भरे आखिरी दशक पर केन्द्रित यह पुस्तक अपने युग की प्रमुख प्रवृत्तियों पर बेवाक टिप्पणियाँ करती हैं। यह उदारीकरण, साम्प्रदायिकता और जातिवाद सभी का एक्स-रे करने और उसे सरल भाषा में सभी को समझाने का प्रयास है।
पुस्तक उससे आगे बढ़कर उन सबसे संवाद करती है जो अपनी-अपनी प्रयोगशालाओं में विकल्पों के लिए रसायन बनाने में लगे हैं। इसमें दलित, आदिवासी, स्त्री और पर्यावरण की रक्षा के लिए चल रहे संघर्षों की जटिलताओं और सम्भावनाओं को समझने की एक तड़प है। यानी यह समाज को कट्टरता से निकालने का एक उपक्रम है।
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