भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी भाषा का समाजशास्त्र हिन्दी भाषा का समाजशास्त्ररवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव
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यह अध्ययन निश्चित ही हिंदी भाषा-समुदाय से जुड़े अनेक प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत करता है
प्रो. रविंद्रनाथ श्रीवास्तव भारतीय भाषा-समुदायों, विशेषकर हिंदी भाषा-समुदाय की संरचना को व्याख्यायित करने की ओर उन्मुख विद्वानों में अग्रणी रहे हैं। 'हिंदी भाषा का समाजशास्त्र' पुस्तक की योजना ही नहीं, इसकी पूर्ण रूपरेखा भी उन्होंने अपने जीवन-काल में ही निर्मित कर ली थी। प्रस्तुत पुस्तक हिंदी भाषा और उसकी बोलियों को व्यापक सामाजिक घटकों से सम्बद्ध करके देखती है। यह अध्ययन निश्चित ही हिंदी भाषा-समुदाय से जुड़े अनेक प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत करता है। अल्प-संख्यक भाषा-समुदायों की भाषाओँ का मिश्रण, स्थिर बहुभाषिकता का विकास, भाषा का मानकीकरण और आधुनिकीकरण, भाषा-विकास में भाषा-नियोजन की भूमिका आदि कुछ ऐसे ही प्रश्न हैं, जिन्हें हिंदी भाषा-समाज को केंद्र में रखकर प्रो. श्रीवास्तव ने उठाया है और उनकी विवेचना-व्याख्या की है। पाठकों के सम्मुख यह पुस्तक रखते हुए हमें दुःख और संतोष दोनों का अहसास हो रहा है। दुःख इस बात का कि यह पुस्तक उनके जीवनकाल में प्रकाशित न हो सकी, और संतोष यह है कि उनका यह महत्तपूर्ण अध्ययन पाठकों तक पहुँच पा रहा है। आशा है, यह पुस्तक तथा इस श्रृंखला की अन्य पुस्तकें भी प्रो. श्रीवास्तव के भाषा-चिंतन को प्रभावशाली ढंग से अध्येताओं तक पहुंचाएगी और हिंदी भाषा के प्रति स्नेह एवं लगाव रखनेवाले मनीषी भाषाविद प्रो. रविंद्रनाथ श्रीवास्तव की स्मृति को ताजा रखेंगी।
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