आलोचना >> धूमिल की कविता में विरोध और संघर्ष धूमिल की कविता में विरोध और संघर्षनीलम सिंह
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है। संसद एवं राजनीति के बदलते परिदृश्य में धूमिल की कविता पर आलोचना की यह किताब धूमिल के माध्यम से अपने दौर की समीक्षा है।
धूमिल की कविता में विरोध और संघर्ष धूमिल की कविता उस आम-आदमी की कविता है जो आज की राजनीति के केन्द्र में है। कभी हाशिये पर रखे जाने वाले इस आम-आदमी को संसद से लेकर सड़क तक जिस प्रकार धूमिल ने देखा शायद उसका पुनर्नबीकरण हम आज की राजनीति में देख रहे हैं। ऐसे में धूमिल की कविता के विविध पहलुओं को उजागर करती यह किताब धूमिल की कविता में विरोध और संघर्ष उनके विरोध और संघर्ष की छोट परन्तु मुकम्मल दास्तान प्रस्तुत करती है। जैसा कि नामवर जी ने आमुख में इंगित किया है—धूमिल अपने दौर के सबसे समर्थ कवियों में एक है। ऐसे कवि जिनकी कविता की अनुगूँज साठोत्तरी कविता को प्रतिबिम्बित करती है। पर उससे भी आगे जाकर भविष्य का एक रास्ता तलाशने की राह दिखाती है। काशीनाथ सिंह धूमिल की साहित्य यात्रा के सबसे घनिष्ठ सहचर थे और उनसे लेखिका की बातचीत में धूमिल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की सार्थक पहचान व्यंजित होती है। नामवर जी की आलोचना दृष्टि ने धूमिल की कविता की विशिष्टता को पहली बार साहित्य संसार के सामने रखा था और इतने अरसे बाद उनकी नजर से धूमिल का गुजरना सुखद संयोग है। संसद एवं राजनीति के बदलते परिदृश्य में धूमिल की कविता पर आलोचना की यह किताब धूमिल के माध्यम से अपने दौर की समीक्षा है।
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