सामाजिक विमर्श >> भोजपुर : बिहार में नक्सलवादी आंदोलन भोजपुर : बिहार में नक्सलवादी आंदोलनकल्याण मुखर्जी, राजेंद्र सिंह यादव
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भोजपुर : बिहार में नक्सलवादी आन्दोलन' पुस्तक दक्षिण बिहार के भोजपुर जिले पर केन्द्रित है
वर्तमान भारत के सम्मुख जो ज्वलन्त प्रश्न हैं, उनमें से एक है नक्सलवाद। नक्सलवाद का जन्म अनेक सामाजिक कारणों से हुआ है और वह आज अतिवाद का पर्याय-सा समझा जा रहा है। 'भोजपुर : बिहार में नक्सलवादी आन्दोलन' पुस्तक दक्षिण बिहार के भोजपुर जिले पर केन्द्रित है। इसी जिले के सहार ब्लॉक में एकवारी गाँव है, जिसे कभी 'भोजपुर का नक्सलबाड़ी' कहा जाता था। कल्याण मुखर्जी और राजेन्द्र सिंह यादव ने अपने अनुभवों की प्रामाणिकता व तीव्रता के साथ इस पुस्तक की रचना की है। लेखकों के अनुसार भोजपुर जिले में किसी भी व्यापक आन्दोलन के दो दौर हैं : 1930 का दशक, यानी त्रिवेणी संघ का दौर और 1960 का दशक अर्थात् नक्सलवादी उथल-पुथल का दौर। लेखकद्वय नक्सलवादी आन्दोलन से जुड़े प्रमुख लोगों का स्मरण करते हुए कहते हैं, '...इन लोगों ने जिस संघर्ष की शुरुआत की, वह उत्तर बंगाल के नक्सलबाड़ी और आन्ध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम के उस हथियारबन्द संघर्ष की ही अगली कड़ी थी, जो इस समय तक उन इलाकों में खत्म हो चला था।' समय के एक विशेष खंड में समाहित सक्रियताओं का तार्किक विवरण आज के कई प्रश्नों का उत्तर तलाशने में मददगार होगा। वर्तमान सन्दर्भों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पुस्तक। 1970 के दशक के शुरू के वर्ष भावी घटनाओं का पूर्वाभास देने लगे थे। गंगा के दोनों नक्सलवादियों के बिखरे हुए गुट थे। कुछ और थे जो जेलों में अपने दिन गुज़ार रहे थे।
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