आलोचना >> उत्तर आध्यात्मिक और समकालीन कथा-साहित्य उत्तर आध्यात्मिक और समकालीन कथा-साहित्यलक्ष्मी गौतम
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यह पुस्तक 'उत्तर आधुनिकता व समकालीनता बोध' को भारतीय सन्दर्भ में प्रस्तुत करने का मौलिक प्रयास है
मौलिक इस दृष्टि में-क्योंकि यह विमर्श का विखंडनवादी स्वर लेकर उपस्थित होता है जो केंद्र व् हाशिया दोनों की स्थिति को एक साथ लेकर चलता है, जिसमे टकराहट की त्रासदी से उत्पन्न परिस्थितियों की निर्मिति है। यहाँ 'महाआख्यानों के अंत' के साथ, नवीन लघुता बोध व् हाशिया का केन्द्रवर्ती स्वर ही प्रमुखता प्राप्त करता है। इस कृति का मूल मंतव्य यही रहा है कि हिंदी जगत आयातित उत्तर आधुनिक चिंतन से बचते हुए भारतीय परिदृश्य में उत्तर आधुनिकता को किसी पूर्वग्रह से मुक्त होते हुए 'स्वतंत्र विमर्श' के रूप में उपस्थित करना है।
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