आलोचना >> समकालीन हिन्दी कहानियाँ : अन्तरंग परिचय समकालीन हिन्दी कहानियाँ : अन्तरंग परिचयसी एम योहन्नान
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प्रस्तुत पुस्तक इक्कीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक की कहानियों पर विस्तृत तथा सारगर्भित आलोचनात्मक टिप्पणी है
कहानी सदा लोकप्रिय रही है। इससे सम्बन्धित आन्दोलनों में भी पर्याप्त उछल-कूद रही है। नयी कहानी, अकहानी, सहज कहानी, सक्रिय कहानी, सचेतन कहानी, समान्तर कहानी फिर परवर्ती सहज कहानी आदि आन्दोलनों ने कहानी को आलोचना के केन्द्र में बनाये रखा है परन्तु कहानी तो कहानी होती है। इतना आवश्यक है कि विधा के आकर्षण को बनाये रखने के लिए इसके कलात्मक पक्ष में बदलाव आता रहता है। प्रस्तुति में अन्तर का बदलाव कहानी को रोचक बनाता है। प्रस्तुति का द्वन्द्व ही वस्तुत: किसी भी रचना को महान् बनाता है।
इक्कीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक में रचित कहानियाँ विषयवस्तु एवं कला की दृष्टि से तो ध्यान आकर्षित करती हैं परन्तु साथ ही बाजारवाद, भ्रष्टाचार, स्वार्थवाद, ढिंढोरावाद आदि प्रवृत्तियों के कारण जीवन-शैली के बदलाव को भी रेखांकित करती हैं।
प्रस्तुत पुस्तक इक्कीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक की कहानियों पर विस्तृत तथा सारगर्भित आलोचनात्मक टिप्पणी है। यह हिन्दी कहानी की दीर्घकालीन यात्रा का आलोचनात्मक सोपान है जो बिना खेमेबाजी के, सहज-सार्थक भाव से इक्कीसवीं सदी के प्रथम दशक के कहानीकारों एवं रचनाओं पर बेबाक, निष्पक्ष टिप्पणी करता है तथा कहानी यात्रा के विकास को दक्षतापूर्वक सहेजता है।
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